< < < मजबूरी है > > >
पैजारबुवा के पाऊल पे पाऊल डालते हुए मयभी इधर अपनी एक मजबूर रचना प्रस्तुत करती हूँ. मिकादादा, पैजारबुवा, एसभाय, और अपने मोहल्ले के आन बान शान अभ्या दो डॉट सबकी माफी पयलेसे ले लेती हूँ. दुनियाकी हर एक औरत अपने नवरे का सबसे ज्यादा म्हणजे लयच गुस्सा कब करती मालूम? जब वो घोरता है तब. इसलिये मैने यइच टॉपिकपे फटाफट सटासट एक कविता लिखही डाली.
ठहेरे हुए पानी मे
किसीने डाले पत्थरकी तरह
होता है तेरा घोरना
कहेने को तो पत्थरकी आवाज
चूल्लूक इत्तीसीच होती है
बस पानी में उस चूल्लूककी
अनगिनत तरंगें उठती है