स्मशान
शमशान . . .
मुझे खुद में दिखाई दिए वो,
जिन्हें मैं पागल समझता था !
एक दिन पता चला ,
वह साले बड़े सयाने थे !
धरम की अंधेरी खाइयों मे
सेवादार बनके जीता हू ।
लोग जिन्हे श्रद्धा सुमन कहेते है
उन्हे शराब बनाकर पीता हूँ
आप हसोगे मुझे ,
कहोगे , "वाह क्या सच्चाई देखते हो ! "
मै कभी आपको समझा नही सकूंगा ,
की मुझे झूठ भी कैसे ( ?) दिखाई देता है !?
जिंदगी जीने के इस झमेले मे
अब खुद को कुछ भी कभी नही कहूंगा
जन्मा था इन्सान बन के
फिर इन्सान होकर ही मरूंगा ।
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अतृप्त . . .