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संध्याकाळी तू गंगेतीरी |
शिव कन्या |
4 |
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पहाट |
दिनेश५७ |
0 |
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महापूर |
बी.डी.वायळ |
5 |
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प्रिये मी मोर झालो तुझ्यासाठी |
खिलजि |
3 |
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शोक कुणाला? खंत कुणाला? |
शिव कन्या |
2 |
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काण्याला सुंदरी मिळाली देवाघरी |
खिलजि |
2 |
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जन्माष्टमी२.* |
शेखरमोघे |
0 |
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देवघर |
शिव कन्या |
19 |
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कृष्णजन्म |
मायमराठी |
4 |
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कावळा.. |
प्राची अश्विनी |
8 |
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(रगेल पावट्याचे मनोगत) |
नाखु |
7 |
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अश्वत्थामा |
मायमराठी |
1 |
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राखी. |
प्राची अश्विनी |
6 |
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आसिंधू |
मृणालिनी |
5 |
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कविता: बिबट्याचे मनोगत |
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6 |
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३३ कोटींची मुक्ती |
मायमराठी |
3 |
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वाळूचे विरहगीत |
मायमराठी |
10 |
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धुरंधर |
खिलजि |
7 |
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श्रावण आला गं सखे |
बिपीन सुरेश सांगळे |
8 |
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चार थेंब |
मायमराठी |
6 |
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मर्लिन मन्रो.... |
जयंत कुलकर्णी |
6 |
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सुंदरसा तो पाऊस यावा |
बिपीन सुरेश सांगळे |
0 |
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मिळता नजरेस नजर |
अविनाशकुलकर्णी |
5 |
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कृष्णछबी |
मायमराठी |
8 |
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सरसर सरसर आली सर |
बिपीन सुरेश सांगळे |
8 |
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तू मी अन पाऊस |
पाषाणभेद |
6 |
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वारी |
मायमराठी |
6 |
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दुष्ट दुष्ट बायको! |
अत्रुप्त आत्मा |
27 |
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कविता: आज्जी माझी… |
bhagwatblog |
5 |
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पावसाच्या धारा |
बिपीन सुरेश सांगळे |
0 |
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इंद्रधनू |
पाषाणभेद |
8 |
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असं वाटतं ! |
श्वेता२४ |
16 |
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चंद्रयान आणि रिलेशनशिप |
पुणेरी कार्ट |
8 |
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झरझर झरझर |
शिव कन्या |
16 |
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माकडांच्या पुढे नाचली माणसे! |
गंगाधर मुटे |
16 |
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लढली अशी कि ती जणू झुन्जीतच वाढली |
खिलजि |
8 |
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हा संभ्रम माझा |
चांदणे संदीप |
4 |
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अभंग... |
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5 |
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निर्झर |
पाषाणभेद |
7 |
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तुझे शहर |
शिव कन्या |
11 |
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""कालचक्र"" |
मृगनयनी |
12 |
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माफ करा राजे आम्ही पितो , होय आम्ही पितो |
खिलजि |
5 |
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काल धरण बांधिले |
अनन्त्_यात्री |
5 |
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आला आला रे आला महिना भादवा |
पाषाणभेद |
31 |
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तुझ्या बरमुडा त्रिकोणा चे आकर्षण.... |
अविनाशकुलकर्णी |
35 |
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घनदाट गर्द रेशमी केशकुंतल |
अविनाशकुलकर्णी |
2 |
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कधीकधी मी हळवा होतो , बघुनी देव दानवांत |
खिलजि |
4 |
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प्रेम कोडगे घेऊन फिरलो |
खिलजि |
3 |
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सुखाच्या सीमेवर दुःखांची घरे वसतात |
खिलजि |
4 |
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पावसाविषयी असूया |
पाषाणभेद |
5 |
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पूर्वी आपण जिथे भेटायचो , तिथे आता एक टपरी झालीय |
खिलजि |
12 |
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पृथ्वी उवाच |
श्रेयासन्जय |
9 |
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सर्पणाला एकदा पालवी फुटली |
खिलजि |
24 |
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(व्हिस्की पिऊन आलो...) |
गड्डा झब्बू |
12 |
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(काय करून आलो) |
नाखु |
40 |
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डॉक्टर हा निमित्तमात्र.. |
सोन्या बागलाणकर |
10 |
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पावसा पावसा पडू नकोस |
बिपीन सुरेश सांगळे |
4 |
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कविता पिंपळपान |
अत्रुप्त आत्मा |
32 |
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पावसा पावसा पड रे |
बिपीन सुरेश सांगळे |
2 |
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कोडगं व्हायचं... |
निओ |
4 |
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बिल देऊन आलो.. |
गवि |
32 |
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कुरळ्या बटावर माझ्या |
अविनाशकुलकर्णी |
4 |
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(चहा पिऊन आलो..) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
9 |
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असा पाऊस |
पाषाणभेद |
9 |
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ऑफिसात जाऊन आलो |
महासंग्राम |
4 |
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गझल : पुन्हा एकदा... |
bhagwatblog |
9 |
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दाराआडचा पप्पू (आणि त्याची मम्मी) |
चित्रगुप्त |
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(मिपा हे, दर्जेदार, लेखनाचे, म्हणे व्यासपीठ आहे) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
13 |
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धागा चालेना, धागा पळेना... धागा संथ चाली, काही केल्या पेटेना |
चामुंडराय |
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डोह-१ |
सागरलहरी |
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