|
जुना ओसाड वाडा |
दत्ता काळे |
24 |
|
माझं काय चुकलं.. |
प्राजु |
41 |
|
माणसं अशी का वागतात? |
चतुरंग |
19 |
|
मास्कमधून |
चांदणे संदीप |
5 |
|
एक व्हायरस साला आदमी को.. |
अनन्त्_यात्री |
2 |
|
असुनी स्वत:च पाशी |
संदीप-लेले |
6 |
|
क्लीओपात्रा |
अविनाशकुलकर्णी |
3 |
|
आला रे आला कोरोना आला |
खिलजि |
3 |
|
मन |
संदीप-लेले |
5 |
|
तू अशी |
संदीप-लेले |
3 |
|
तुलाही,मलाही |
अविनाशकुलकर्णी |
2 |
|
कोरोना गो, गो कोरोना; साहेब म्हटले कोरोनाला |
पाषाणभेद |
4 |
|
का चाफा म्लान पडला |
अविनाशकुलकर्णी |
4 |
|
अपुर्ण |
अविनाशकुलकर्णी |
4 |
|
COVID19 च्या नावानं बो बो बो बो |
अनन्त्_यात्री |
3 |
|
वुई मीस 'यू'! |
माहितगार |
3 |
|
होळी |
अविनाशकुलकर्णी |
0 |
|
तारुण्य पुन्हा जगताना |
माहितगार |
5 |
|
ज्ञानोबांस नंब्र विनंती |
अनन्त्_यात्री |
12 |
|
अंबानींची फणी |
खिलजि |
2 |
|
राधाकृष्ण प्रणय प्रितीचे गीत |
माहितगार |
2 |
|
ती संध्याकाळ |
माहितगार |
2 |
|
एक चांदणी माझ्या घरात डोकावते |
चांदणे संदीप |
7 |
|
धर्म इथे बेताल झाला |
खिलजि |
2 |
|
(कितनी राते....) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
4 |
|
मानव प्रगल्भ अनसुय कधीच होणार नाही ? |
माहितगार |
2 |
|
आजि मराठीचा दिनु! |
Sumant Juvekar |
2 |
|
भादरायला हवे वाढलेले, भादरायला गेलो |
खिलजि |
9 |
|
कांताला सुरु झाल्या वांत्या |
खिलजि |
2 |
|
ग चांदण्यांनो |
चांदणे संदीप |
6 |
|
माय-(मराठीची) पोएम |
अनन्त्_यात्री |
0 |
|
मिलिंदमिलन |
मायमराठी |
8 |
|
बघुनी तुझी ती रंगीत अम्ब्रेला |
खिलजि |
2 |
|
केयलफिड्डी! |
चलत मुसाफिर |
4 |
|
एकदा प्रेमी राधा कृष्ण होऊन पहावे. |
माहितगार |
4 |
|
मिळालं का तुला माझं प्रेमाचं फूल सेंट केलेलं ? |
खिलजि |
5 |
|
रोमांचक भूल ! |
अविनाशकुलकर्णी |
6 |
|
मंत्रालयात 'आग'-बाई |
माहितगार |
7 |
|
परकीमिलन |
माहितगार |
2 |
|
(डबा) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
8 |
|
कोण कुठली रोहिणी |
Rohini Mansukh |
4 |
|
डबा |
Rohini Mansukh |
7 |
|
एका उदास संध्याकाळी |
पाषाणभेद |
0 |
|
'इमॅजिन' (कल्पना कर...) |
कुमार जावडेकर |
2 |
|
अनामिक |
Rohini Mansukh |
1 |
|
एकदा तरी माती व्हावे |
पाषाणभेद |
1 |
|
"शर" |
परशु |
1 |
|
मास्तरा- जाशिल कधि परतून? |
Sumant Juvekar |
3 |
|
वास्तव |
Rohini Mansukh |
2 |
|
मास्तरा- जाशिल कधि परतून? |
Sumant Juvekar |
3 |
|
वणवा |
चांदणशेला |
0 |
|
कुणी स्पेस देता का रे स्पेस? |
अबोलघेवडा |
1 |
|
द्वारकाधीश |
आनंदमयी |
8 |
|
हातचं राखून |
Rohini Mansukh |
4 |
|
मला कुठे शोधशील ? |
Rohini Mansukh |
2 |
|
चांदणं चाहूल |
चांदणशेला |
0 |
|
अनुवादित मंकु तिम्मन कग्ग - १ |
रोहित रामचंद्रय्या |
3 |
|
फिटेल का हे ऋण माझे |
खिलजि |
8 |
|
तो, ती आणि ते |
Rohini Mansukh |
5 |
|
दिल की बाते |
अनाहूत |
0 |
|
वृक्षतोड... |
गणेशा |
7 |
|
(प्रच्छन्न) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
2 |
|
प्रसन्न |
अनन्त्_यात्री |
2 |
|
(गंमत केली" म्हणालास तू) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
9 |
|
कविता: शब्द |
bhagwatblog |
0 |
|
<मंजूर नाही> |
उत्खनक |
1 |
|
मंजूर नाही |
क्रान्ति |
37 |
|
गझल |
क्रान्ति |
18 |
|
(पप्पूबाळा) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
9 |
|
"गंमत केली" म्हणालास तू... |
प्राची अश्विनी |
21 |