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आठवण |
प्रभो |
1 |
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(ती) |
चतुरंग |
9 |
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परी |
सागरलहरी |
1 |
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काही कविता. |
रामदास |
11 |
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रान वाट |
सागरलहरी |
0 |
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करतो अजून आशा.... |
सागरलहरी |
0 |
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पूर्वीगत पण आता काही लिहिवत नाही |
अनिरुद्ध अभ्यंकर |
10 |
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पूर्वीगत पण आता काही करवत नाही |
केशवसुमार |
7 |
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अश्वत्थ |
सागरलहरी |
1 |
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[कसाही का असेना] |
अमृतांजन |
13 |
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मला इन्फेक्शन होऊ नये म्हणून |
पुष्कर |
7 |
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पूर्वीगत पण आता कोणी हिणवत नाही |
चेतन |
0 |
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संकल्पः नव्या युगाचा |
नरेंद्र गोळे |
3 |
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"निरोप नवव्या वर्षाचा, स्वागत नव्या वर्षाचे..." |
निमिष सोनार |
1 |
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व्यसन...! |
विशाल कुलकर्णी |
2 |
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गोरी गोरी पान (विडंबन) |
JAGOMOHANPYARE |
4 |
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बंदोबस्त-२ |
केशवसुमार |
9 |
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बंदोबस्त |
विनायक प्रभू |
16 |
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शनिवारचा उतारा - (कृष्ण-ए-कमळ) |
३_१४ विक्षिप्त अदिती |
33 |
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मन भरून येते पण आभाळ काही भरत नाही |
सागरलहरी |
2 |
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गीत रामायण- बाबुजी आणि गदिमांचे |
पुष्कराज |
3 |
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मागणे |
पद्मश्री चित्रे |
10 |
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खरेसाहेब ......., माफ करा ! |
विशाल कुलकर्णी |
10 |
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(विडंबनी खेळ..) |
चतुरंग |
16 |
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अनंताचा खेळ.. |
प्राजु |
20 |
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कशाला ? |
सागरलहरी |
2 |
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येई येई गा मुकुंदा | जगज्जीवन परमानंदा | |
सागरलहरी |
0 |
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नव्या दशकाचे बडबडगीत. |
विजुभाऊ |
25 |
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प्रतिसाद विजूभै का असा लिहिलात! |
केसुरंगा |
30 |
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(आवाहन) अर्थात कसं काय एडीटर बरं हाय का? |
केसुरंगा |
13 |
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तुझ्या विना ... |
विशाल कुलकर्णी |
14 |
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(पंक्चरची वेळ) |
llपुण्याचे पेशवेll |
18 |
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(घाईची वेळ) |
शाहरुख |
8 |
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एकाकी वाट |
अरुण मनोहर |
10 |
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अगा देवराया | अम्हा खेव द्याया | |
सागरलहरी |
3 |
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बुधवारची कविता : (खवट) |
llपुण्याचे पेशवेll |
16 |
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हरी हे दयाळा कधी भेट देशी |
सागरलहरी |
3 |
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रिती पोकळी |
क्रान्ति |
13 |
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(पुरावा) |
चतुरंग |
8 |
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(काढदिवस) |
टारझन |
8 |
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गमक-२ |
केशवसुमार |
2 |
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('वाढ'दिवस) |
चतुरंग |
25 |
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बुधवारची कविता: (वाढदिवस - ३) |
llपुण्याचे पेशवेll |
19 |
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वाढदिवस -२ |
केशवसुमार |
10 |
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रात्र मिलनाची ... ! |
विशाल कुलकर्णी |
8 |
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(उशिराने आलेलं) शहाणपण..... |
उदय सप्रे |
2 |
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शनिवारचा उतारा - दुविधा |
३_१४ विक्षिप्त अदिती |
11 |
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अहो पाव्हनं, अंमळ घ्या विसावा , |
सागरलहरी |
5 |
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गेले आडवे मांजर! |
मानस६ |
2 |
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शनिवारचा ऊतारा.. अजुन एक दुविधा |
हर्षद आनंदी |
0 |
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कान्हा तुझ्या मुरलीचा, साज असा छळतो रे, |
सागरलहरी |
3 |
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ते झाड़ तोडले कोणी ? |
सागरलहरी |
3 |
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शेवट |
बेसनलाडू |
17 |
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सात .... |
विशाल कुलकर्णी |
8 |
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<सवयीने मंद > |
विजुभाऊ |
4 |
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(सवयीने मंद) |
३_१४ विक्षिप्त अदिती |
15 |
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काळ......... |
चन्द्रशेखर गोखले |
3 |
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कधीतरी |
नेहमी आनंदी |
3 |
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निरंजन |
दमनक |
2 |
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ते जीवच वेडे होते |
क्रान्ति |
19 |
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जगलो जरी मी खुप. |
टुकुल |
2 |
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[मूल ते मा़झेच होते] |
अमृतांजन |
3 |
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फूल ते माझे न होते.... |
सागरलहरी |
0 |
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(शेवट) |
केशवसुमार |
17 |
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मैत्रि अशी असावी .. |
विवेकग |
4 |
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वेडा |
फ्रॅक्चर बंड्या |
2 |
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<शेवट> |
ऋषिकेश |
0 |
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(ते जीवच वेडे होते) |
चेतन |
0 |
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त्यात काय मोठंसं...? |
विशाल कुलकर्णी |
0 |
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एक मुक्तक. |
रामदास |
21 |