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युगधंर |
Patil 00 |
0 |
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बांडगूळं |
चांदणे संदीप |
15 |
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जालफ्रेझीची सोय |
खिलजि |
3 |
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कितीसा पुरोगामी आहेस ? |
माहितगार |
0 |
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कवितेचे पान - ऑनलाईन कवितेची मैफिल |
पारुबाई |
3 |
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बाप …. |
मनिष |
15 |
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खरी वाटते, पूरी वाटते |
कहर |
1 |
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उगाच वणवा भडकलेला , गजरेवालीने त्यात टाकली माती |
खिलजि |
6 |
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तुझे डोळे |
कौस्तुभ आपटे |
19 |
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ए पावसा ! |
लौंगी मिरची |
3 |
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फलीत |
कहर |
5 |
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पदर |
कहर |
5 |
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कोलाज |
दमामि |
16 |
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ये रे ये रे पावसा |
अनन्त्_यात्री |
12 |
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शीर्षक सुचले नाही ...सुचलं तर कळवा |
चाणक्य |
18 |
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तुला साथ हवीय ना माझी ? |
पथिक |
6 |
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(बसफुगडी) |
नाखु |
20 |
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एक दिवस तरी लहान "बाबू" बनून बघावे |
खिलजि |
33 |
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दिलासा ..... |
फिझा |
6 |
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'कविता' |
सत्यजित... |
16 |
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काय हाही भास आहे ? |
नाहिद नालबंद |
4 |
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पिंपळपान |
कहर |
11 |
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अनोळखी वाट |
अनन्त्_यात्री |
0 |
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साकल्यसूक्त |
मितान |
136 |
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का करत नाही कुणी उलट सारे |
खिलजि |
2 |
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गणु अन गणूची मनू |
खिलजि |
0 |
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माझी चादर कोनी चोरीयली |
सतिश गावडे |
35 |
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सूर्योदय |
विशाल कुलकर्णी |
1 |
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हकिक़त |
मिसळलेला काव्यप्रेमी |
13 |
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तिथे ओठंगून उभी... |
अनन्त्_यात्री |
6 |
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बघ ओततो कसा? "शॉट"ने घेत माप... सख्या ऑन द रॉक्स, आज ओत ओल्डमंक ! |
चामुंडराय |
13 |
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(सख्या चुन्यासवेच, आज मळ गायछाप!) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
17 |
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च्या मायला बॅट घ्यायची होती हातात , अन तेंडुलकर बरोबर खेळायचं होतं |
खिलजि |
0 |
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आठवणींचा पाऊस..!! |
विशुमित |
0 |
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तेव्हा |
अनन्त्_यात्री |
4 |
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..कुणी दार माझे ठोठावले.. |
कानडाऊ योगेशु |
5 |
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स्कॉसपूस प्येग बाबा , स्कॉसपूस प्येग ( अर्थातच प्रेरणा ) |
खिलजि |
6 |
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तुझ्यासाठी म्या काय नाय केलंय |
खिलजि |
3 |
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गर्दभगान |
भृशुंडी |
8 |
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आर्जव |
अबोलघेवडा |
1 |
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एकदा टारझन अंगात आला |
खिलजि |
57 |
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अस्साच जळत राहिलास तर , जाताना पाणी पण महाग होईल |
खिलजि |
9 |
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माझ्या ब्लाॅगचा उदयास्त |
अनन्त्_यात्री |
2 |
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'बघणं' राहूनच गेलं |
चित्रगुप्त |
15 |
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मुका मार अनवरत झेलुनी |
अनन्त्_यात्री |
4 |
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बाई पलंगावर बसून होती |
खिलजि |
10 |
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लाल करा ओ माझी लाल करा |
खिलजि |
19 |
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||हुच्चभ्रूंची कैसी लक्षणे || |
अनन्त्_यात्री |
34 |
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रानभेदी..!! |
विशुमित |
6 |
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सगळीकडे सारखेच |
चांदणे संदीप |
17 |
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निनावी कल्लोळ |
नाखु |
11 |
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असाही ऊपदेश |
शाली |
0 |
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(साहेब असेच) ठोकत राहा |
खिलजि |
2 |
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कविची गाडी |
प्रदीप |
6 |
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मी स्वप्न पाहत नाही |
खिलजि |
6 |
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जे घडलं प्रेमात माझ्या , ते तुला सांगूनही कधी कळलंच नाही |
खिलजि |
0 |
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सालं, आज जीव कासावीस झालाय |
खिलजि |
5 |
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तप्त झाली धारा सारी , दहाही दिशा त्या पेटल्या |
खिलजि |
3 |
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माझ्या महाराष्ट्राचं गाणं |
अनन्त्_यात्री |
3 |
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अनघड शब्दांनो.. |
अनन्त्_यात्री |
4 |
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मिणमिणता दिवा. |
Jayant Naik |
4 |
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हा असा राम की ज्याच्या हजार सीता |
अनन्त्_यात्री |
0 |
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सत्वर |
शिव कन्या |
2 |
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हो मी अर्जुन आहे.. |
निओ |
3 |
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दिवसातून छप्पन वेळा |
अनन्त्_यात्री |
5 |
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रक्त त्या डोळ्यातले सांगा पुसावे मी कसे? |
विशाल कुलकर्णी |
2 |
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दोन भिकारी भीक मागती, पुलाखाली करिती वस्ती |
खिलजि |
16 |
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तिच्या कपाळावरचा घामाचा थेम्ब , ओघळून हळुवार हनुवटीपर्यंत आला |
खिलजि |
11 |
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आत्मताडनाची कविता..... |
शिव कन्या |
1 |
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शीर्षक नाही |
मूखदूर्बळ |
0 |