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लाज |
विशाल कुलकर्णी |
11 |
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काही त्रिवेणी रचना... |
राघव |
6 |
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भंपकगिरी |
डॉ. एस. पी. दोरुगडे |
3 |
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"मोदी" हे फक्त आडनाव आहे |
खिलजि |
4 |
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पुन्हा एक स्वातंत्र्यासाठी..!! |
परशुराम सोंडगे |
2 |
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॥ रमू नको या जगात ॥ |
खिलजि |
4 |
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स्वराज्याचे शिलेदार |
खिलजि |
1 |
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सोनरंग |
चांदणशेला |
12 |
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मूठ / कर्ज |
संदीप-लेले |
0 |
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सर्वसामान्य आणि राजकारणी! |
ज्योति अळवणी |
3 |
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सुदाम्याचे पोहे |
प्राची अश्विनी |
7 |
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<नाव सुचवा> |
निशांत_खाडे |
0 |
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पुण्याची मुंबई आता झाली की राव... |
निमिष सोनार |
6 |
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मी माझा |
दिपोटी |
2 |
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प्रपोज डे |
अविनाशकुलकर्णी |
1 |
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माणूस प्रगत झालाय? |
फुंटी |
0 |
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मुक्तपीठ |
चुकार |
4 |
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जसे छाटले मी मला येत गेले,धुमारे पुन्हा! |
सत्यजित... |
10 |
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तुझी आठवण, साठवणींच्या कोंदणात अशीच पडून राहिली |
खिलजि |
1 |
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माझे जगणे होते गाणे ( विडंबन ) |
गोगट्यांचा समीर |
1 |
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सैल असावी मिठी जराशी... |
प्राची अश्विनी |
43 |
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सैल नसू दे मिठी जराही! |
सत्यजित... |
13 |
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हे चैतन्याच्या विराटा |
फुंटी |
5 |
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(हे कोहल्यांच्या विराटा) |
दमामि |
4 |
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प्रश्न साधासाच होता... |
प्राची अश्विनी |
16 |
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तो,ती आणि अबोल प्रेम |
mr.pandit |
2 |
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चल उठ रे बेवड्या झाली सांज झाली... बाहेर दारू गुत्त्यांना हलकेच जाग आली |
चामुंडराय |
7 |
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डू-आयडीज् खूप दिसतात इथे, परतुनी येती "नाना"विध रूपे |
चामुंडराय |
1 |
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या दिशेला एकदाही यायचे नव्हते मला.. वेगळे सुचलेले-- |
राघव |
9 |
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चारोळी |
Swapnaa |
2 |
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(खमकेच टगे बसतात इथे) |
दमामि |
20 |
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नवखेच सखे फसतात इथे |
विशाल कुलकर्णी |
23 |
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या देशात नेमक चाललयं काय? |
परशुराम सोंडगे |
2 |
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तू |
चुकार |
6 |
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(तरही) या दिशेला एकदाही यायचे नव्हते मला! |
सत्यजित... |
10 |
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तुझ्या नाजूक ओठांनी... |
सत्यजित... |
11 |
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(जरही) या दिशेला एकदाही यायचे नव्हते मला |
ज्ञानोबाचे पैजार |
9 |
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मनाचं प्लॉटिंग |
फुंटी |
2 |
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शब्दविता |
फुंटी |
4 |
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(भिती तुझ्याउरी पण) |
नाखु |
6 |
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उरणार ना उद्या ते, जे सत्य काल होते |
विशाल कुलकर्णी |
28 |
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अभिजात(चारोळी) |
पराग देशमुख |
3 |
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ऐक सखे |
अमेय६३७७ |
17 |
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बलिदान त्याविना हे ... (गझल) |
अमेय६३७७ |
4 |
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(खुरपणी) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
15 |
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लावणी |
वैभवदातार |
23 |
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मनातल्या मनात मी... |
सत्यजित... |
4 |
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अंधार काठ |
चांदणशेला |
7 |
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प्रदूषण क्षणिका (३) - वारे - पूर्वी आणि आता |
विवेकपटाईत |
1 |
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प्रदूषण कविता(2)- जिन्न आणि अल्लादीन |
विवेकपटाईत |
1 |
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इतिहासाचं वर्तमान |
अनन्त्_यात्री |
5 |
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अ क्लोथलाईन. |
प्राची अश्विनी |
33 |
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प्रदूषण- पाऊस (१) - भूत आणि वर्तमान |
विवेकपटाईत |
0 |
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प्रवास |
पाषाणभेद |
0 |
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एका अनावर कैफात |
अनन्त्_यात्री |
24 |
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शब्दभूली |
यशोधरा |
45 |
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गडद |
समयांत |
4 |
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प्रतिसादांचा महामेरू । सकल फेक-आयडीस आधारू । अखंड जिल्बिचा निर्धारु । श्रीमंत डूआयडी ।। |
चामुंडराय |
27 |
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प्रिय वेगवान गोलंदाजास - |
जे.पी.मॉर्गन |
8 |
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नृसिंह सरस्वती स्वामी आरती |
वैभवदातार |
12 |
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मोह |
ज्योति अळवणी |
2 |
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आई |
दत्ता काळे |
18 |
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प्रेरणा वगैरे |
चाणक्य |
3 |
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( पुन्हा नोटा ) |
गबाळ्या |
0 |
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भावगीत |
वैभवदातार |
3 |
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अतृप्ती-एक चिरंतना |
अत्रुप्त आत्मा |
29 |
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हिरवे सोने |
चांदणशेला |
2 |
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वाटा |
पद्मश्री चित्रे |
11 |
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( काल रातीला सपान पडलं ) |
गबाळ्या |
4 |
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(बघ जरा पोळीत माझ्या काय आहे….) |
गबाळ्या |
5 |