नेणिवेला जाणिवेने छेदता... |
अनन्त्_यात्री |
6 |
सरी |
चांदणशेला |
0 |
|| अंगारकी || |
ज्ञानोबाचे पैजार |
11 |
मागे राहिली आवली ...... |
चुकलामाकला |
44 |
फुतूर (खूळ) |
मिसळलेला काव्यप्रेमी |
18 |
काय लिहावे तुझ्याचसाठी... |
शब्दबम्बाळ |
16 |
काही कविता अशा..तर काही तशा! - भाग २ |
पद्मावति |
13 |
||तुलसी विवाह || |
वैभवदातार |
13 |
|| विठ्ठल अभंग || |
वैभवदातार |
4 |
काही कविता अशा..तर काही तशा! - भाग १ |
पद्मावति |
22 |
जरी अज्ञात देशाचा |
अनन्त्_यात्री |
9 |
सख्या, कसे? कुठून रोज, आणतोस चांदणे? |
सत्यजित... |
29 |
तू! |
OBAMA80 |
0 |
उजाडताना उल्कांचे व्रण |
अनन्त्_यात्री |
2 |
तू माझा? |
ज्योति अळवणी |
6 |
आंबराई |
चांदणशेला |
0 |
आज पांडव पंचमीच्या निमित्ताने केलेली कविता ... |
वैभवदातार |
5 |
शिवार |
चांदणशेला |
1 |
वाटते आज |
shrivallabh Panchpor |
5 |
नवीन आहे |
आगाऊ म्हादया...... |
5 |
हे सव्यसाची, |
अनन्त्_यात्री |
2 |
दिवाळी कविता |
वैभवदातार |
0 |
मेरे हर दर्द को मेहसूस किया है मैंने.. .. |
Swapnaa |
1 |
एक पावसातली भेट ... ! |
एकप्रवासी |
5 |
वसुबारसेनिमित्त मी केलेली कविता... |
वैभवदातार |
10 |
नशिब |
mr.pandit |
0 |
वासफुलं |
Swapnaa |
4 |
आज गुरुद्वादशी निमित्त मी केलेली कविता ... |
वैभवदातार |
2 |
राजा भोज याने कालिदासाला दिलेली समस्या |
चतुरंग |
21 |
मद्यचषक१ |
चामुंडराय |
0 |
प्रशांत दामले यांच्यावर केलेली कविता .. |
वैभवदातार |
7 |
धरणीचे मनोगत |
वैभवदातार |
1 |
नवी मैत्री |
तृप्ति २३ |
0 |
सख्या कशी कुठून रोज काढतोस भांडणे |
आनन्दा |
1 |
मधुघट१ |
चांदणे संदीप |
3 |
सध्या रोज संध्याकाळी येणार्या पावसावर मी केलेली कविता... |
वैभवदातार |
5 |
मी माझे तारांगण सादर करतो |
drsunilahirrao |
3 |
पावसामुळे काय काय |
पाषाणभेद |
1 |
(कद्रूंना झोडा) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
6 |
भासं~फुलं! |
अत्रुप्त आत्मा |
10 |
ह्रदयातुनी |
शार्दुल_हातोळकर |
11 |
बघ तुला जमतं का ... |
चामुंडराय |
2 |
मुंबईकर . . . . . |
माम्लेदारचा पन्खा |
0 |
हे बहुरुपी |
अनन्त्_यात्री |
2 |
पुष्कळ दूध शिल्लक आहे किंवा दिमाग का दही |
दमामि |
32 |
गहन हे मर्म दु:खाचे |
अनन्त्_यात्री |
2 |
आयुष्य आणि झरा ... |
एकप्रवासी |
0 |
गावाकडच्या मावळतीचे रंग बिलोरी |
अनन्त्_यात्री |
33 |
आरसा |
प्रावि |
0 |
डायरीचे पान |
महासंग्राम |
17 |
हरिहरि... |
दिनेश५७ |
0 |
मन |
दिनेश५७ |
0 |
देवीची शेजारती |
वैभवदातार |
0 |
रमलखुणांची भाषा |
अनन्त्_यात्री |
12 |
उरल्या त्या फक्त आठवणी |
RDK |
0 |
"जलवंती" वर प्रवेश करण्याआधीचे इशारे |
Shashibhushan |
2 |
"जलवंती"ची ओळख |
Shashibhushan |
0 |
जलवंती |
Shashibhushan |
0 |
जगण्यासाठी पुरेसे |
RDK |
3 |
आज पुन्हा |
RDK |
2 |
माझी पहिली अहीराणी कविता |
RDK |
1 |
सँडविच!... |
दिनेश५७ |
4 |
का पुन्हा??? |
RDK |
2 |
महाबडबडगीत |
अनन्त्_यात्री |
11 |
माणसं ! |
फिझा |
6 |
पत्र... |
प. शी. |
0 |
सामान्य माणसानी नाकासमोर चालायचं |
कल्पक |
0 |
सूर्याच्या उष्णतेने तापलेली धरणी वारुणराजाला विनवणी करते |
वैभवदातार |
0 |
नासाच्या जवळी |
लाल गेंडा |
1 |
अत्तर |
शिव कन्या |
3 |