दोन रुपक कविता |
मित्रहो |
0 |
मैत्र.. |
प्राची अश्विनी |
18 |
पाऊस ! |
मनमेघ |
6 |
पाऊस आला |
Secret Stranger |
0 |
यातच सारं काही |
यश पालकर |
4 |
प्रीत फुला |
Secret Stranger |
19 |
साथ |
Secret Stranger |
0 |
(नोटा) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
11 |
ऊपदेश |
शाली |
2 |
वाया गेलेली कविता |
कहर |
13 |
आज हलके वाटले तर |
कहर |
4 |
पुन्हा नव्याने.. |
उमेश मुरुमकार |
0 |
ये पावसा ... |
विशाल कुलकर्णी |
9 |
आगळा अनुराग |
विशाल कुलकर्णी |
0 |
काही लिहिण्यापुरती |
मनमेघ |
8 |
असाव कोणीतरी |
तृप्ति २३ |
1 |
मेघ बरसला |
विवेकपटाईत |
0 |
मेघ बरसला |
विवेकपटाईत |
0 |
तेव्हा माघार घ्यावी.... |
Patil 00 |
4 |
पहिली नजर |
शब्दानुज |
0 |
मनोमनी |
Patil 00 |
0 |
मिरगाचो पाउस |
Patil 00 |
7 |
प्रकाश |
मिसळलेला काव्यप्रेमी |
6 |
युगधंर |
Patil 00 |
0 |
बांडगूळं |
चांदणे संदीप |
15 |
जालफ्रेझीची सोय |
खिलजि |
3 |
कितीसा पुरोगामी आहेस ? |
माहितगार |
0 |
कवितेचे पान - ऑनलाईन कवितेची मैफिल |
पारुबाई |
3 |
बाप …. |
मनिष |
15 |
खरी वाटते, पूरी वाटते |
कहर |
1 |
उगाच वणवा भडकलेला , गजरेवालीने त्यात टाकली माती |
खिलजि |
6 |
तुझे डोळे |
कौस्तुभ आपटे |
19 |
ए पावसा ! |
लौंगी मिरची |
3 |
फलीत |
कहर |
5 |
पदर |
कहर |
5 |
कोलाज |
दमामि |
16 |
ये रे ये रे पावसा |
अनन्त्_यात्री |
12 |
शीर्षक सुचले नाही ...सुचलं तर कळवा |
चाणक्य |
18 |
तुला साथ हवीय ना माझी ? |
पथिक |
6 |
(बसफुगडी) |
नाखु |
20 |
एक दिवस तरी लहान "बाबू" बनून बघावे |
खिलजि |
33 |
दिलासा ..... |
फिझा |
6 |
'कविता' |
सत्यजित... |
16 |
काय हाही भास आहे ? |
नाहिद नालबंद |
4 |
पिंपळपान |
कहर |
11 |
अनोळखी वाट |
अनन्त्_यात्री |
0 |
साकल्यसूक्त |
मितान |
136 |
का करत नाही कुणी उलट सारे |
खिलजि |
2 |
गणु अन गणूची मनू |
खिलजि |
0 |
माझी चादर कोनी चोरीयली |
सतिश गावडे |
35 |
सूर्योदय |
विशाल कुलकर्णी |
1 |
हकिक़त |
मिसळलेला काव्यप्रेमी |
13 |
तिथे ओठंगून उभी... |
अनन्त्_यात्री |
6 |
बघ ओततो कसा? "शॉट"ने घेत माप... सख्या ऑन द रॉक्स, आज ओत ओल्डमंक ! |
चामुंडराय |
13 |
(सख्या चुन्यासवेच, आज मळ गायछाप!) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
17 |
च्या मायला बॅट घ्यायची होती हातात , अन तेंडुलकर बरोबर खेळायचं होतं |
खिलजि |
0 |
आठवणींचा पाऊस..!! |
विशुमित |
0 |
तेव्हा |
अनन्त्_यात्री |
4 |
..कुणी दार माझे ठोठावले.. |
कानडाऊ योगेशु |
5 |
स्कॉसपूस प्येग बाबा , स्कॉसपूस प्येग ( अर्थातच प्रेरणा ) |
खिलजि |
6 |
तुझ्यासाठी म्या काय नाय केलंय |
खिलजि |
3 |
गर्दभगान |
भृशुंडी |
8 |
आर्जव |
अबोलघेवडा |
1 |
एकदा टारझन अंगात आला |
खिलजि |
57 |
अस्साच जळत राहिलास तर , जाताना पाणी पण महाग होईल |
खिलजि |
9 |
माझ्या ब्लाॅगचा उदयास्त |
अनन्त्_यात्री |
2 |
'बघणं' राहूनच गेलं |
चित्रगुप्त |
15 |
मुका मार अनवरत झेलुनी |
अनन्त्_यात्री |
4 |
बाई पलंगावर बसून होती |
खिलजि |
10 |
लाल करा ओ माझी लाल करा |
खिलजि |
19 |