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पाणि |
मॅन्ड्रेक |
4 |
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प्राक्तन |
संदीप चित्रे |
22 |
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तुझ्या डोळ्यांचा थांग घेताना - कविता |
सागर |
19 |
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वैधानीक इशारा. |
रामदास |
13 |
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डायरेक्ट ढगात जातील . . . |
काहीतरीच |
4 |
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एक द्वाडीक कविता |
विजुभाऊ |
2 |
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कॉर्न फ्लेक्स |
सुवर्णमयी |
11 |
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देवद्वार छंदः गारवा: निकाल केव्हा? |
बाजीराव |
2 |
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स्वप्नं |
स्मिता श्रीपाद |
5 |
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मी शतजन्म घेतले |
अविनाशकुलकर्णी |
0 |
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अंड्याची टरफले आणि बुटाची लेस |
लिखाळ |
24 |
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-*******हॅप्पी न्यु इयर*******------- |
अविनाशकुलकर्णी |
8 |
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प्रॉव्हिडन्ड फंड |
पॅपिलॉन |
2 |
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वामा.. |
प्राजु |
29 |
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गोल्डफ्लेक्स |
घाटावरचे भट |
23 |
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विव्हळतं तळ... |
स्वाती फडणीस |
3 |
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विनोद |
मॅन्ड्रेक |
6 |
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धूसर राखाडी.. |
स्वाती फडणीस |
2 |
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(संपेल ना कधीही , हा खेळ दहशतीचा!! ) |
अमोल केळकर |
3 |
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थेंब एक असा बरसून गेला.. |
स्वाती फडणीस |
13 |
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हमी |
उपटसुंभ |
11 |
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निरव पावले (अनुवाद-गीतांजली) |
लिखाळ |
13 |
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माझ्याच त-हा |
स्वाती फडणीस |
5 |
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(मी माझाच) |
फटू |
5 |
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एक "सवाई मैफिल " |
दत्ता काळे |
4 |
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माझ्या छोट्या मैत्रिणीस ... |
फटू |
7 |
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मैत्रीण नसलेल्या मित्रांसाठी ! |
अनिरुद्धशेटे |
9 |
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विहंग तो विहरता झाला... |
स्वाती फडणीस |
5 |
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(विचारणा) |
चेतन |
13 |
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सासरेबुवा |
अंकुश चव्हाण |
3 |
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ही तान कधीची..! |
स्वाती फडणीस |
9 |
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(भासमान) |
चतुरंग |
12 |
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झोका... |
प्राजु |
26 |
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संवेदना!! |
स्वाती फडणीस |
12 |
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अपवाद |
पॅपिलॉन |
10 |
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वाटसरूच्या पाऊलखुणा (अनुवादित) |
धनंजय |
22 |
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माझा गाव |
लवंगी |
7 |
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भासमान |
पॅपिलॉन |
6 |
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चारवांतर |
परिकथेतील राजकुमार |
6 |
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सहज भेट्ली---- |
पुष्कराज |
2 |
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बुद्धी (उद्धव मात्रावृत्त प्रयत्न) |
ऋषिकेश |
10 |
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एक रुबाई किंवा चारोळी |
दत्ता काळे |
13 |
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घायाळ हरिणी |
राजा |
0 |
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पुढार्यांचे देशभक्ती गीत |
चन्द्रशेखर गोखले |
5 |
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...मला आठवण आहे ! |
केशवसुमार |
8 |
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जागतिक मंदी |
राजा |
1 |
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असचं वाटलं म्हणुन| |
केदार केसकर |
10 |
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एक रात्र.. |
प्राजु |
21 |
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सांगून जा ... |
मनीषा |
11 |
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हिची चाल |
भिडू |
7 |
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`अण्णा'न्न दशा! |
आपला अभिजित |
5 |
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सोनियाच्या तालावर महाराष्ट्र वारयावर |
कपिल काळे |
4 |
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लव लेटर |
कशिद |
6 |
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बापू.. |
उपटसुंभ |
10 |
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आसाराम बापु |
rahulkransubhe |
8 |
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पतंग |
अरुण मनोहर |
7 |
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पुन्हा पहिल्या सारखं |
rahulkransubhe |
0 |
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आई कसे म्हणु मी... |
rahulkransubhe |
0 |
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(भणंग २) |
चतुरंग |
2 |
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खेळ खुर्चिचा |
मनोज |
3 |
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झुंज त्याची व्यर्थ गेली |
पुष्कराज |
4 |
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एक जुनी कविता: सहज आठवली म्हणून |
अविनाश ओगले |
4 |
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अरे पुन्हा आयुष्याच्या.. |
बहुगुणी |
1 |
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पुरे झाले चंद्र सूर्य! |
केदार केसकर |
1 |
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आठवण |
पद्मश्री चित्रे |
14 |
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पुन्हा जिवंत परत आले तर |
सुवर्णमयी |
5 |
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अजुन मी... |
राघव |
4 |
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काही कविता. |
रामदास |
31 |
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असेच काहीतरी |
चेतन |
2 |
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सुट्टी..! |
संदीप चित्रे |
11 |