मास्तरा- जाशिल कधि परतून? |
Sumant Juvekar |
3 |
वास्तव |
Rohini Mansukh |
2 |
मास्तरा- जाशिल कधि परतून? |
Sumant Juvekar |
3 |
वणवा |
चांदणशेला |
0 |
कुणी स्पेस देता का रे स्पेस? |
अबोलघेवडा |
1 |
द्वारकाधीश |
आनंदमयी |
8 |
हातचं राखून |
Rohini Mansukh |
4 |
मला कुठे शोधशील ? |
Rohini Mansukh |
2 |
चांदणं चाहूल |
चांदणशेला |
0 |
अनुवादित मंकु तिम्मन कग्ग - १ |
रोहित रामचंद्रय्या |
3 |
फिटेल का हे ऋण माझे |
खिलजि |
8 |
तो, ती आणि ते |
Rohini Mansukh |
5 |
दिल की बाते |
अनाहूत |
0 |
वृक्षतोड... |
गणेशा |
7 |
(प्रच्छन्न) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
2 |
प्रसन्न |
अनन्त्_यात्री |
2 |
(गंमत केली" म्हणालास तू) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
9 |
कविता: शब्द |
bhagwatblog |
0 |
<मंजूर नाही> |
उत्खनक |
1 |
मंजूर नाही |
क्रान्ति |
37 |
गझल |
क्रान्ति |
18 |
(पप्पूबाळा) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
9 |
"गंमत केली" म्हणालास तू... |
प्राची अश्विनी |
21 |
स्वामीराया |
शब्दांगी |
5 |
जयदेव जयदेव जय श्री ख्रिसमसट्री देवा |
माहितगार |
4 |
कविकल्पना |
Rohini Mansukh |
1 |
बापाचे मुलीस पत्र.. |
प्रियाभि.. |
7 |
अन रात झाली शाम्भवी |
खिलजि |
15 |
उडता मुका, जरी असला सुका |
खिलजि |
6 |
(सूरनळीचे उपयोग) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
8 |
दूष्काळ झळा... |
गणेशा |
12 |
माहेर, सासर |
पाषाणभेद |
1 |
बटाट्याचे उपयोग |
पाषाणभेद |
3 |
अहो डॉक्टर, काढा वेंटीलेटर |
पाषाणभेद |
7 |
इलाही जमादार ह्यांची नितांतसुंदर गज़ल! |
चतुरंग |
13 |
देव मानीत नाहीत मंदिराचे कर्मचारी ।। |
बाजीगर |
11 |
क्लीनचीट ची फॅक्टरी |
बाजीगर |
3 |
कव्वाली: तुला पाहिले की |
पाषाणभेद |
0 |
दुर्वास |
निराकार गाढव |
8 |
बोटावर शाईचा अजून रंग ओला |
ज्ञानोबाचे पैजार |
18 |
ती सर ओघळता.. |
आनंदमयी |
1 |
पाहीले असे खूप वार |
बाजीगर |
6 |
ना देवेंद्र देव इथे , ना उद्धव आहे साव |
खिलजि |
6 |
मेळघाट ... |
गणेशा |
8 |
समुहगीतः भारतभूचे सुपुत्र आम्ही |
पाषाणभेद |
2 |
यशाचे आता गा मंगल गान |
पाषाणभेद |
1 |
वेदनाच मला मिळू दे |
पाषाणभेद |
6 |
मी पुन्हा येईन |
पाषाणभेद |
10 |
दु:ख |
पद्मश्री चित्रे |
12 |
जुनसर |
मायमराठी |
5 |
तोल |
अन्या बुद्धे |
2 |
ओठात दाटलेले... |
निलेश दे |
2 |
मौनाइतके कुणीच नाही |
प्राची अश्विनी |
11 |
तर्काच्या सीमेवर तेव्हा |
अनन्त्_यात्री |
4 |
सिक्रेट धंद्याचे |
पाषाणभेद |
0 |
अज्ञाताचा गड चढताना |
अनन्त्_यात्री |
4 |
जनुक जिन्याची सर्पिल वळणे |
अनन्त्_यात्री |
14 |
मी पुन्हा येईल |
शुभांगी दिक्षीत |
0 |
' भाज्यांचं संमेलन ' |
mukund sarnaik |
1 |
कविता : भेट मित्रांची… |
bhagwatblog |
2 |
हस्तर कविता :- महायुती |
हस्तर |
0 |
आमचं ठरलयं, संयुक्त महाराष्ट्रात बेळगाव उरलंय |
पाषाणभेद |
1 |
गंमत घ्यावी.. |
प्राची अश्विनी |
17 |
गुन्हेगार! |
फिझा |
4 |
सैराट |
एपी |
1 |
सैराट |
एपी |
0 |
४. बोल ना रे बाबा काही...( समाप्त ) |
गणेशा |
14 |
कोजागिरी |
मायमराठी |
3 |
दृष्टी |
मिसळलेला काव्यप्रेमी |
13 |
भक्ति गीत: सप्तशॄंग गडावर जायचं |
पाषाणभेद |
2 |