प्रेम कोडगे घेऊन फिरलो |
खिलजि |
3 |
सुखाच्या सीमेवर दुःखांची घरे वसतात |
खिलजि |
4 |
पावसाविषयी असूया |
पाषाणभेद |
5 |
पूर्वी आपण जिथे भेटायचो , तिथे आता एक टपरी झालीय |
खिलजि |
12 |
पृथ्वी उवाच |
श्रेयासन्जय |
9 |
सर्पणाला एकदा पालवी फुटली |
खिलजि |
24 |
(व्हिस्की पिऊन आलो...) |
गड्डा झब्बू |
12 |
(काय करून आलो) |
नाखु |
40 |
डॉक्टर हा निमित्तमात्र.. |
सोन्या बागलाणकर |
10 |
पावसा पावसा पडू नकोस |
बिपीन सुरेश सांगळे |
4 |
कविता पिंपळपान |
अत्रुप्त आत्मा |
32 |
पावसा पावसा पड रे |
बिपीन सुरेश सांगळे |
2 |
कोडगं व्हायचं... |
निओ |
4 |
बिल देऊन आलो.. |
गवि |
32 |
कुरळ्या बटावर माझ्या |
अविनाशकुलकर्णी |
4 |
(चहा पिऊन आलो..) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
9 |
असा पाऊस |
पाषाणभेद |
9 |
ऑफिसात जाऊन आलो |
महासंग्राम |
4 |
गझल : पुन्हा एकदा... |
bhagwatblog |
9 |
दाराआडचा पप्पू (आणि त्याची मम्मी) |
चित्रगुप्त |
13 |
(मिपा हे, दर्जेदार, लेखनाचे, म्हणे व्यासपीठ आहे) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
13 |
धागा चालेना, धागा पळेना... धागा संथ चाली, काही केल्या पेटेना |
चामुंडराय |
15 |
डोह-१ |
सागरलहरी |
2 |
वजनदार! |
चलत मुसाफिर |
8 |
डोह |
सागरलहरी |
2 |
कुरबुर झाली |
पाषाणभेद |
4 |
दे दे दे दे दे दे |
पाषाणभेद |
9 |
मळभ..! |
जेनी... |
17 |
स्व - राष्ट्र..!! |
राघव |
20 |
अज्ञाताच्या काठावर |
अनन्त्_यात्री |
7 |
शोधत होतो पुन्हा स्वत:ला |
अनन्त्_यात्री |
2 |
आज मी पुन्हा नापास झालो |
खिलजि |
6 |
ती म्हणाली " चिमणी " , मी म्हणालो भुर्रर्रर्र |
खिलजि |
5 |
वटवटसावित्री |
खिलजि |
4 |
जागरण.... |
अत्रुप्त आत्मा |
17 |
मी तुझा विचार करते |
शिव कन्या |
2 |
सिग्नल .....! |
फिझा |
5 |
बालमित्रांची सुट्टी.... |
bhagwatblog |
4 |
"फार काय" |
युयुत्सु |
2 |
मी पण अमिताभ बनलो असतो भाय |
खिलजि |
14 |
वळीव |
महासंग्राम |
6 |
सांग ना,सख्या |
अविनाशकुलकर्णी |
4 |
सांग ना,सख्या |
अविनाशकुलकर्णी |
0 |
जिलब्या |
अविनाशकुलकर्णी |
3 |
कवित्व इथले संपत नाही |
mrcoolguynice |
6 |
वदनी कवळ..... |
फुंटी |
8 |
नाद ब्रम्ह होई अंगी , चढे चढे भक्तिज्वर |
खिलजि |
0 |
...पत्र... |
चुकलामाकला |
5 |
(गफ) |
टवाळ कार्टा |
5 |
" कशी आहेस ? " |
फिझा |
13 |
आभाळ पक्षी |
पाषाणभेद |
1 |
शूर वैमानिक श्रीमान अभिनंदन वर्धमान |
Sumant Juvekar |
14 |
बहावा |
बिपीन सुरेश सांगळे |
7 |
तुझ्या ऊन्हाचं कौतुक.. |
प्राची अश्विनी |
37 |
घे मिठीत |
आकाश५०८९ |
9 |
गुलमोहर मोहरतो तेव्हा |
मनमेघ |
2 |
रियल रियल |
शिव कन्या |
4 |
(प्रार्थना!) |
गड्डा झब्बू |
2 |
स्वामि धागे घेऊन येतात |
सोन्या बागलाणकर |
48 |
होत नाही कपातला चहा गार आता |
आकाश५०८९ |
4 |
प्रार्थना! |
मनमेघ |
9 |
विहीर खोदण्याचा विचार |
शिव कन्या |
14 |
(उष:काल) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
6 |
सोनसंध्या |
इरामयी |
1 |
धून वाजवी बासरीवाला |
बिपीन सुरेश सांगळे |
2 |
माणसे कविता होऊन येतात..... |
शिव कन्या |
12 |
भयकाल |
शिव कन्या |
3 |
बरवा विठ्ठल ,बडवा विठ्ठल...जुडवा विठ्ठल . |
बाजीगर |
1 |
थांबवावे कुणाला मी |
आकाश५०८९ |
3 |
लाख अंतरे.. |
आकाश५०८९ |
7 |