नि:संग उदासीन नभ हे
धरतीला भिडते जेथे
त्या धूसर क्षितिजावरती
अस्फुट काही खुणवीते
मरुभूमीतुनी जडाच्या
चैतन्य जिथे लसलसते
त्या अद्भुत सीमेवरती
अस्फुट काही खुणवीते
शब्दांच्या निबिड अरण्यी
अर्थाचे बंधन नुरते
त्या अपार मुक्तीमध्ये
अस्फुट काही खुणवीते
प्रतिक्रिया
10 Aug 2020 - 4:03 am | रातराणी
नेहमीप्रमाणे सुरेख!!
10 Aug 2020 - 8:18 am | चांदणे संदीप
अनंत यात्री, भारीच, कविता आणि आप, दोनो. :)
सं - दी - प
10 Aug 2020 - 8:53 am | प्राची अश्विनी
वाह!
10 Aug 2020 - 2:48 pm | ज्ञानोबाचे पैजार
अस्फुटाची झलक मिळता
तगमग भारी होते
हातात गवसते तो वर
हुलकावणी देउन जाते
पैजारबुवा,
15 Aug 2020 - 5:58 pm | अनन्त्_यात्री
कवितारसिकांना धन्यवाद.
20 Sep 2020 - 3:36 am | शार्दुल_हातोळकर
सुरेख !!
24 Sep 2020 - 11:08 pm | राघव
खूप आवडल्या गेलेले आहे! दुसरे कडवे विशेष!