नकोस टाकू
कटाक्ष तिरपा
मोहकसा ग
पुन्हा पुन्हा -
नकोस करू
गर्व रुपाचा
ठुमकत मिरवत
पुन्हा पुन्हा -
घमेंड तुजला
रूपगर्विते
दाखवी आरसा
पुन्हा पुन्हा -
नित्य आवडे
आत्मस्तुती
मनास कशी
पुन्हा पुन्हा -
डोळे अमुचे
आहेत म्हणुनी
रुपडे बघतो
पुन्हा पुन्हा -
आम्ही नसतो
डोळेही नसते
विचार कर ग
पुन्हा पुन्हा .. !
प्रतिक्रिया
26 Mar 2015 - 2:21 am | रुपी
आवडली!
30 Mar 2015 - 5:23 pm | विवेकपटाईत
आम्ही नसतो
डोळेही नसते
विचार कर ग
पुन्हा पुन्हा .. !
अहाहा, आवडली.
30 Mar 2015 - 7:35 pm | पॉइंट ब्लँक
छान!
31 Mar 2015 - 6:35 am | अत्रुप्त आत्मा
भारीच!
1 Apr 2015 - 10:40 am | मदनबाण
छान !
मदनबाण.....
आजची स्वाक्षरी :- मेरा कुछ सामान..
14 Apr 2015 - 1:28 pm | विदेश
रुपी, विवेकपटाईत, पॉइंट ब्लँक, अत्रुप्त, मदनबाण -
प्रतिसादासाठी आपणा सर्वांचे आभार !
15 Apr 2015 - 3:11 pm | वेल्लाभट
मै खिलाडी तू अनाडी या ऐतिहासिक गाण्याच्या सुरुवातीच्या ओळी....
हम दोनो है
अलग अलग
हम दोनो है
जुदा जुदा....
ओ ओ ओ ओ
ओ ओ ओ
ओ ओ ओ
ओ ओ ओ !
या नुसार कडव्यांना चाली लावून दोन कडव्यांच्या मधे ओ ओ ओ ओ... चा आलाप (सॉरी ओलाप) म्हणायचा
काय सही वाटतेय कविता आता. उडत्या चालीची एकदम.
पुन्हा पुन्हा... सिंक्स विथ जुदा जुदा.... खफा खफा
15 Apr 2015 - 3:45 pm | टवाळ कार्टा
व्वा...मान गये :)