महासंग्राम in जे न देखे रवी... 9 Jul 2015 - 2:42 pm आतातरी तुझ्या मिठीत विरघळू दे, गंध प्राजक्ताचा थोडा दरवळू दे. एव्हाना जगलो एकटाच, सुगंधी जखम थोड़ी भळभळु दे. आल्यासारखे रहा थोड़ी हृदयात, घरास थोड़े घरपण मिळू दे. बेरीज कर तुझ्या-माझ्या जीवनाची, आयुष्याचे गणित थोड़े तरी कळू दे. -जिप्सी कविता प्रतिक्रिया छान.. 9 Jul 2015 - 2:52 pm | ज्ञानोबाचे पैजार आता तरी देवा मला पावाशीला का? सुख ज्याला म्हणतात ते दावाशीला का? या गाण्याची चाल या कवितेला फिट बसते आअहे. पैजाराबुवा, हे हे 9 Jul 2015 - 2:57 pm | महासंग्राम पैजार बुवा तुम्ही फारच विनोदी बुआ छान 9 Jul 2015 - 3:02 pm | मिसळलेला काव्यप्रेमी छान छान 9 Jul 2015 - 11:22 pm | एक एकटा एकटाच मस्त लिहिलीय छान 10 Jul 2015 - 9:13 am | विशाल कुलकर्णी छान धन्यवाद 10 Jul 2015 - 9:55 am | महासंग्राम विशाल तुमची प्रतिक्रिया नेहमीच चांगले लिहायला प्रवृत्त करते . आवडली. 10 Jul 2015 - 11:31 am | रातराणी आवडली. मस्तच!!! 12 Jul 2015 - 7:19 am | जडभरत मस्तच!!! उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़! 12 Jul 2015 - 8:26 am | अत्रुप्त आत्मा उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़!
प्रतिक्रिया
9 Jul 2015 - 2:52 pm | ज्ञानोबाचे पैजार
आता तरी देवा मला पावाशीला का?
सुख ज्याला म्हणतात ते दावाशीला का?
या गाण्याची चाल या कवितेला फिट बसते आअहे.
पैजाराबुवा,
9 Jul 2015 - 2:57 pm | महासंग्राम
पैजार बुवा तुम्ही फारच विनोदी बुआ
9 Jul 2015 - 3:02 pm | मिसळलेला काव्यप्रेमी
छान
9 Jul 2015 - 11:22 pm | एक एकटा एकटाच
मस्त लिहिलीय
10 Jul 2015 - 9:13 am | विशाल कुलकर्णी
छान
10 Jul 2015 - 9:55 am | महासंग्राम
विशाल तुमची प्रतिक्रिया नेहमीच चांगले लिहायला प्रवृत्त करते .
10 Jul 2015 - 11:31 am | रातराणी
आवडली.
12 Jul 2015 - 7:19 am | जडभरत
मस्तच!!!
12 Jul 2015 - 8:26 am | अत्रुप्त आत्मा
उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़!