आज माझ्या गावचा | रस्ता उदास वाटला | वेशीतल्या कमानीचा | खांब का हा वाकला ||१||
एक कामधेनू होती | इवल्याशा आठवांत | दावे भकास आज | भिजले गं आसवात ||२ ||
काळ्या आईस नाही | काळ्या ढगाची भेट | थरथरणा-या मनात | रणरणते ऊन थेट ||३||
एक भिंत येथे होती | उन्हामध्येही ओली | मातीत शुष्क भेग | पडवीत रुंद झाली ||४||
ओठांत आज नाही | हक्काचे एक हासू | आई महागले गं | डोळ्यांतलेही आसू ||५||
- संध्या
०६ मार्च २०१३
प्रतिक्रिया
6 Mar 2013 - 10:57 am | मिसळलेला काव्यप्रेमी
__/\__
परत एकदा एक रेखिव रचना.
6 Mar 2013 - 11:22 am | अत्रुप्त आत्मा
1
आणी...
एक भिंत येथे होती | उन्हामध्येही ओली | मातीत शुष्क भेग | पडवीत रुंद झाली|| >>> या साठी __/\__
6 Mar 2013 - 11:06 am | चाणक्य
आवडली
6 Mar 2013 - 11:12 am | हासिनी
सुंदर! आवडली!!
6 Mar 2013 - 11:17 am | वेल्लाभट
अ प्र ति म !
6 Mar 2013 - 11:35 am | फिझा
छान कविता !!
8 Mar 2013 - 5:02 pm | सांजसंध्या
सर्वांचे आभार
8 Mar 2013 - 7:30 pm | पैसा
आवडली.
8 Mar 2013 - 10:44 pm | जेनी...
:)
9 Mar 2013 - 2:02 pm | सुधीर
आवडली!