एक थेंब वळवाचा
अंकुर पुन्हा उजवेल
खपलीखालच्या वळणापाशी
नवा श्रावण हिरवळेल
पाउलवाटांचं काय
पाऊल पडेल तिथे वाट सापडेल
अवखळ खळखळणारं पाणी
ओंजळीत साकळेल
आकाशही मावेल मग त्यात
रुसलेलं गावेल
निर्व्याज पावेल
मावळतीच्या संध्येकाठी
चंद्र चांदणं हसेल
..................अज्ञात
प्रतिक्रिया
31 Aug 2012 - 1:37 pm | मोहनराव
अप्रतिम!
31 Aug 2012 - 7:01 pm | पैसा
कविता आवडली!
1 Sep 2012 - 7:26 am | स्पंदना
क्या बात है।
रुसलेलं गावेल
निर्व्याज पावेल
मावळतीच्या संध्येकाठी
चंद्र चांदणं हसेल
अंहं?
1 Sep 2012 - 8:47 am | पक पक पक
मस्त ,झक्कास... :)
1 Sep 2012 - 2:55 pm | अत्रुप्त आत्मा
मस्त
1 Sep 2012 - 4:12 pm | प्रा.डॉ.दिलीप बिरुटे
आवडली कविता.
1 Sep 2012 - 6:35 pm | जाई.
कविता आवडली
1 Sep 2012 - 6:44 pm | अन्या दातार
टुक्कार धाग्यांमध्ये उठून दिसणारे काव्य. अज्ञातकुल यांच्या अश्याच सुंदर सुंदर कविता वरचेवर वाचायला मिळोत. :)
1 Sep 2012 - 7:55 pm | निरन्जन वहालेकर
क्या बात है ! सुन्दर ! आवडली कविता ! ! !
2 Sep 2012 - 10:04 am | ज्ञानराम
अप्रतिम कविता....
...>>>क्कार धाग्यांमध्ये उठून दिसणारे काव्य. अज्ञातकुल यांच्या अश्याच सुंदर सुंदर कविता वरचेवर वाचायला मिळोत.
सहमत.
2 Sep 2012 - 8:43 pm | शुचि
छान आहे कविता.
3 Sep 2012 - 7:51 pm | मदनबाण
छान. :)
5 Mar 2013 - 4:38 am | फिझा
मस्त !!
5 Mar 2013 - 5:38 pm | श्रिया
मस्त!आवडली!
5 Mar 2013 - 5:52 pm | मिसळलेला काव्यप्रेमी
क्या बात है|
5 Mar 2013 - 9:19 pm | आदूबाळ
व्वा! "वळवथेंब" हा शब्दच मनोहारी आहे.
क्या बात!
पण...
हा शब्द काव्याच्या इतर शब्दसंपदेशी फटकून राहिला आहे असं वाटतं...
6 Mar 2013 - 12:08 am | इन्दुसुता
अप्रतिम...
खूपच आशादायी.
6 Mar 2013 - 12:15 pm | वेल्लाभट
छान
7 Mar 2013 - 12:47 am | कवितानागेश
फारच सुंदर आहे रचना... परत परत वाचतेय.. गार गार वाटतय. :)