हाक

मंदार दिलीप जोशी's picture
मंदार दिलीप जोशी in जे न देखे रवी...
31 Oct 2015 - 7:56 pm

हाकेसरशी धावून येणं
सदैव पाठीशी असणं
काहीच पुरेसं नव्हतं
मान्य

तुझ्या आर्त मूक हाका
ऐकू आल्या नाहीत
खोट्या हास्यामागचं
वेदनांनी होरपळलेलं मन
दिसू शकलं नाही
मान्य

तरीही इतकं सारं बिघडण्याआधी
स्वतःहून साद घालणं
फार कठीण होतं का?

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पूर्वप्रकाशितः
http://mandarvichar.blogspot.in/2015/10/blog-post_31.html

अश्विन कृ. ५, शालीवाहन शके १९३७
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कविता माझीकविता

प्रतिक्रिया

मांत्रिक's picture

31 Oct 2015 - 9:47 pm | मांत्रिक

वाह! आवडली!!!

मोगा's picture

1 Nov 2015 - 9:41 am | मोगा

काव्यगुरु बेफिकिरना दाखवा.

दमामि's picture

1 Nov 2015 - 10:54 am | दमामि

वा!!!!

सत्याचे प्रयोग's picture

1 Nov 2015 - 10:59 am | सत्याचे प्रयोग

आवडेश

इडली डोसा's picture

1 Nov 2015 - 10:39 am | इडली डोसा

आणि नक्की काय घडलं असावं या कवितेमागे याचा थोडाफार अंदाजही आला.

बिन्नी's picture

1 Nov 2015 - 12:24 pm | बिन्नी

कविता आवडली

एस's picture

1 Nov 2015 - 12:36 pm | एस

फारच सूचक!

बाबा योगिराज's picture

1 Nov 2015 - 12:47 pm | बाबा योगिराज

आवड्यास...

पैसा's picture

1 Nov 2015 - 4:36 pm | पैसा

सुरेख!

मंदार दिलीप जोशी's picture

1 Nov 2015 - 10:05 pm | मंदार दिलीप जोशी

सर्वांना धन्यवाद.

इडली डोसा, विशेष धन्यवाद :)

अनिरुद्ध.वैद्य's picture

1 Nov 2015 - 10:43 pm | अनिरुद्ध.वैद्य

मंदार,

मस्त जमलीय. हाक कधी कधी मारली जातच नाही. कम्युनिकेशनच्या अभावाने लैच गोंधळ होतो :)

शिव कन्या's picture

3 Nov 2015 - 5:44 pm | शिव कन्या

हेच म्हणायचे होते.