सुटला पहाट वारा
अंतरात सळसळ
मन सुगंधी सुगंधी
पसरला दरवळ
नको स्वप्नातून जाग
नको जाग इतक्यात
नीज हलके हलके
पुन्हा आली पापण्यात
कसा मुजोर हा वारा
रेंगाळला खिडकीशी
पावा मंजुळ मंजुळ
जणु कृष्णाचा कानाशी
मन सैरभैर झाले
वेडावले, खुळावले
कृष्ण रंगाने रंगाने
चिंब चिंब भिजवले
रेशमाच्या सोनसरी
आला सोबती घेऊन
ओला पाऊस पाऊस
ढगातून उतरून
सतरंगी झाले नभ
धरा पाचूने नटली
ऊन कोवळे कोवळे
पसरली गोड लाली
आज सृष्टी देते हाळी
ऐक नाविन्याची साद
सुख दारात दारात
दे तयाला प्रतिसाद.
जयश्री
प्रतिक्रिया
20 Nov 2012 - 9:24 am | प्रचेतस
सुरेख.
सुंदर कविता.
20 Nov 2012 - 10:50 am | तिमा
चांगली कविता मिपावर
द्यावा प्रतिसाद्,प्रतिसाद|
20 Nov 2012 - 10:53 am | स्पा
सुन्दर, सुरेख...
20 Nov 2012 - 5:05 pm | अत्रुप्त आत्मा
मस्त येकदम :-)
20 Nov 2012 - 8:56 pm | मदनबाण
सुंदर ! :)
20 Nov 2012 - 10:02 pm | अमितसांगली
मस्त जमलीय...
20 Nov 2012 - 10:23 pm | पाषाणभेद
परेड मुड बदलेंगे, मुड बदल.
21 Nov 2012 - 1:11 pm | जयवी
खूप खूप धन्यवाद :)
21 Nov 2012 - 5:12 pm | ज्ञानराम
मस्त...
11 Jan 2013 - 10:06 pm | शुचि
छान कविता. खूप आवडली.
12 Jan 2013 - 11:02 am | जयवी
धन्यवाद :)
12 Jan 2013 - 11:05 am | अनिल तापकीर
सुंदर काव्य