मोरपीस जणू फिरते तनी,
वेणू नाद हा पडता कानी,
काहूर मनात, अन हुरहूर आगळी
मोहरते आठवता, छबी सावळी
थरथरते अधर, लाली गाली
किंचित लाज, अधीर नयनी
ललना साजिरी, नटली सजली
शाम सख्यावर, आणिक भाळली
बावरे मन, अन आशा कोवळी
मिलनास आसुसली, राधा भोळी
पाहून अधीर राधा, बोले सखी
"होईल बोभाटा ग गोकुळी!",
नयनी पाणी, मिटे पापणी
अस्वस्थ राधा,आजही नंदनवनी!!!
... रेघोटी
प्रतिक्रिया
8 Jan 2013 - 2:35 pm | मिसळलेला काव्यप्रेमी
मस्त मस्त मस्त...
आवडली
8 Jan 2013 - 2:45 pm | गवि
पण म्हणजे रेशा हा तुझा आयडी नाही ??? ;)
9 Jan 2013 - 3:06 am | शुचि
फारच सुंदर.
9 Jan 2013 - 9:21 am | पैसा
कविता आवडली
9 Jan 2013 - 10:59 am | शिवप्रसाद
छान
10 Jan 2013 - 8:31 am | लीलाधर
राधे क्रुष्ण राधे क्रुष्ण ! मस्तच
10 Jan 2013 - 8:37 am | पाषाणभेद
सुंदर. कविता आवडली.
10 Jan 2013 - 11:33 am | रेशा
धन्यवाद
प्रतिसादा बद्दल आभार :)
11 Jan 2013 - 11:50 am | अत्रुप्त आत्मा
मस्त...मस्त...झक्कास..! :-)
11 Jan 2013 - 11:54 am | वपाडाव
आडौली...
11 Jan 2013 - 11:56 am | किसन शिंदे
झक्कास रचना!!
11 Jan 2013 - 5:26 pm | मूकवाचक
+१
11 Jan 2013 - 11:59 am | प्रीत-मोहर
अप्रतीम!!! आवडेश
11 Jan 2013 - 2:46 pm | अनिल तापकीर
सुंदर
11 Jan 2013 - 5:19 pm | अभ्या..
सुरेख. आवडली.
13 Jan 2013 - 4:09 pm | सुधीर
छान आहे. आवडली.
13 Jan 2013 - 4:52 pm | प्रशु
नयनी पाणी, मिटे पापणी
अस्वस्थ राधा,आजही नंदनवनी!!!
मस्तच.....
कागा रे कागा रे तोहे इतनी अरज मोरे चुनचुन खाईयो मास, अरजिया रे खाईंयो ना दो नैना मोरे पिया के मिलन कि आस.. हे म्हणणारी राधा खुपच सुंदर