मागचा सारा चुकारा मागते
दु: ख अवघा धृवतारा मागते
थेंबही नाही उभ्या रानात अन
जिंदगानी शेतसारा मागते
केवढे जहरुन हे गेले शहर
वीषही आता उतारा मागते
वेदना ओथंबुनी येतात अन
सूख मोराचा पिसारा मागते
जो कधी उधळून ती जाते स्वत:
प्रीत तो सारा पसारा मागते
डॉ. सुनील अहिरराव
प्रतिक्रिया
6 Feb 2017 - 1:06 pm | धनावडे
एक नंबर
शेवटतर भारीच
6 Feb 2017 - 3:47 pm | पराग देशमुख
लागली...लागली... काळजाला लागली... कविता...
6 Feb 2017 - 7:29 pm | जव्हेरगंज
जबरी!!!!
6 Feb 2017 - 7:50 pm | अभ्या..
आह्ह्ह्ह
खतरन्नाक
7 Feb 2017 - 1:56 pm | पैसा
सुंदर कविता!
7 Feb 2017 - 2:06 pm | अनुप ढेरे
छान!
8 Feb 2017 - 5:11 am | अत्रुप्त आत्मा
नेहमीप्रमाणे... भारिच!
8 Feb 2017 - 5:52 am | जयंत कुलकर्णी
छान ! . कविता म्हणजे गाणे नव्हे हे तुमच्या कविता वाचल्यावर कळते....
8 Feb 2017 - 9:48 am | drsunilahirrao
सुश मय ,पराग देशमुख ,जव्हेरगंज, अभ्या , पैसा ,अनुप ढेरे , आत्मबंध , जयंत कुलकर्णी
धन्यवाद मित्रहो ! __/\__
8 Feb 2017 - 10:58 am | गवि
नेहमीप्रमाणे उत्तम.
9 Feb 2017 - 1:42 am | संदीप डांगे
सर्व प्रतिक्रियांशी सहमत...
9 Mar 2017 - 4:42 pm | संदीप-लेले
मान गये आपको !