जसे छाटले मी मला येत गेले,धुमारे पुन्हा
कळू लागले जीवनाचे फिरंगी,इशारे पुन्हा!
कुण्या डोंगरी एक पणती सुखाने,जळू लागली
तमाच्या तमेचे तिला येत गेले,पुकारे पुन्हा!
कळ्या वेचल्या काल माझ्या करांनी,गुन्हा जाहला
फुलू लागले श्वास-श्वासांत माझ्या,निखारे पुन्हा!
पुन्हा लेखणीला नवा बाज चढला,लिहू लागलो
तुला पाहिले अन् जुने स्वप्न झाले,कुंवारे पुन्हा!
तुझी लाट झालो तसे वाटले की विरावे अता
कुण्या वादळाने नको दाखवाया किनारे पुन्हा!
—सत्यजित
प्रतिक्रिया
7 Feb 2018 - 2:46 am | सानझरी
सुंदर लिहीलीए गझल..
क्या बात!
7 Feb 2018 - 7:35 am | manguu@mail.com
छान
7 Feb 2018 - 8:31 am | प्रचेतस
मस्तच
7 Feb 2018 - 5:08 pm | पुंबा
अतीउत्तम..
बढिया..
लिहित राहा..
11 Feb 2018 - 7:28 am | दमामि
+१२३
8 Feb 2018 - 9:23 am | प्राची अश्विनी
सुरेख!
8 Feb 2018 - 6:37 pm | Jayant Naik
फार सुंदर . गझलेचा मूड फार मस्त सांभाळला आहे.
8 Feb 2018 - 7:23 pm | अस्वस्थामा
आवडली हो एकदम.. :)
9 Feb 2018 - 12:24 pm | संजय पाटिल
जबरदस्त!!!
9 Feb 2018 - 4:35 pm | सत्यजित...
सर्व प्रतिसादक रसिकांचे अनेक धन्यवाद!