ही रात निळीशार,
ओतीत चंद्र-धार...
स्वप्नातल्या कळ्यांना
देते नवा आकार!
पाण्यात चंद्र-पक्षी,
मांडून सौख्य-नक्षी...
किरणावरी शशीच्या
होतात मंद स्वार!
पाहून चंद्र-मेळा,
क्षितिजास ये उमाळा...
नक्षत्र बांधतात
तारांस एक-तार!
स्वप्नील चंद्र-गाणे
मधु-मीलनी उखाणे...
गातात फूल, वारे
छेडीत गंध-तार!
एकांत चंद्र-वेडा,
वितळून जात थोडा...
देतो अनामिकेला
अलगूजशी पुकार!
उचलून चंद्र-मेणा,
र्हदयात चंद्र-वेणा...
कित्येक चंद्र-वेळा,
करतात येरझार!
— सत्यजित
प्रतिक्रिया
2 Dec 2020 - 8:29 pm | कानडाऊ योगेशु
मस्तच.
2 Dec 2020 - 8:44 pm | Bhakti
पौर्णिमेच्या चंद्रासारखी गोड !
उचलून चंद्र-मेणा,
र्हदयात चंद्र-वेणा...
कित्येक चंद्र-वेळा,
करतात येरझार!
3 Dec 2020 - 12:47 am | चांदणे संदीप
अप्रतिम, नितळ!
सं - दी - प
3 Dec 2020 - 8:43 am | ज्ञानोबाचे पैजार
कविता अतिशय आवडली
पैजारबुवा,
3 Dec 2020 - 9:30 am | गोंधळी
मस्त 👍
4 Dec 2020 - 9:24 am | सत्यजित...
सर्वांचे मनःपूर्वक धन्यवाद!
4 Dec 2020 - 11:09 am | प्राची अश्विनी
अप्रतिम!!!
5 Dec 2020 - 8:09 am | सनईचौघडा
जबरदस्त
7 Dec 2020 - 8:39 pm | सत्यजित...
धन्यवाद प्राची, सनईचौघडा!
7 Dec 2020 - 9:32 pm | राघव
अलवार रचना! सुंदर. :-)
11 Dec 2020 - 4:15 pm | सत्यजित...
धन्यवाद राघव!
11 Dec 2020 - 4:54 pm | धनावडे
सुंदर
11 Dec 2020 - 5:59 pm | रुपी
सुरेख!
13 Dec 2020 - 11:15 pm | सत्यजित...
धन्यवाद धनावडे, रुपी!
3 Jan 2021 - 4:30 pm | तुषार काळभोर
अतिशय तरल.
उचलून चंद्र-मेणा,
र्हदयात चंद्र-वेणा...
कित्येक चंद्र-वेळा,
करतात येरझार!
मीटर पण छान मेन्टेन केलाय.
7 Jan 2021 - 5:44 pm | सत्यजित...
धन्यवाद तुषार!