भिजा चिंब आधी,पुन्हा जीव जाळा
नको वाटतो ना? असा पावसाळा!
नभी दाटल्या आसवांचा उमाळा
सुन्या जीवनाचाच हा ठोकताळा!
असे वाटते पावसाचे बरसणे
जुन्या आठवांना नव्याने उगाळा!
कितीही दुरुस्त्या करा लाख वेळा
झिरपतो मनाच्या तळाचाच गाळा!
कधीही कुठेही कसाही बरसतो
रुजावा कसा अन् कुठे मग जिव्हाळा?
—सत्यजित
प्रतिक्रिया
7 Sep 2020 - 4:38 pm | प्राची अश्विनी
क्या बात!
7 Sep 2020 - 8:29 pm | राघव
सु-रे-ख! :-)
7 Sep 2020 - 11:03 pm | गणेशा
नेहमी प्रमाणे अप्रतिम
8 Sep 2020 - 11:20 am | रातराणी
मस्त!!
11 Sep 2020 - 11:41 am | सत्यजित...
प्राची,राघव,गणेशा,रातराणी खूप धन्यवाद!
20 Sep 2020 - 3:33 am | शार्दुल_हातोळकर
मस्त !!