तुझ्या एका अबोल्यानं
उदासली फुलदाणी.
जीव झाला वेडापिसा
आणि काळजाचं पाणी..
तुझ्या एका अबोल्याची
कशी खुलावी रे कळी?
सुचेनासे होते काही
लोकं म्हणतात खुळी.
तुझ्या एका अबोल्यात
किती चंद्र गेले वाया..
अरे वेड्या, पाऊसही
आता आला नं संपाया!
तुझ्या एका अबोल्याशी
आता माझाही अबोला,
बघतेच किती वेळ
झुलतो हा खेळझुला!
प्रतिक्रिया
20 Sep 2022 - 4:14 pm | Bhakti
सुंदर!
20 Sep 2022 - 6:16 pm | सस्नेह
क्या बात..
20 Sep 2022 - 6:48 pm | कर्नलतपस्वी
तुझ्या एका अबोल्याशी
आता माझाही अबोला,
बघतेच किती वेळ
झुलतो हा खेळझुला!
डेंजर सिच्युएशन,
कुणीतरी पाढंर निशाण लवकर दाखवा.
छान, आवडली.
20 Sep 2022 - 9:18 pm | उग्रसेन
तुझ्या एका अबोल्याशी
आता माझाही अबोला,
बघतेच किती वेळ
झुलतो हा खेळझुला!
अहाहा...!
21 Sep 2022 - 1:27 am | श्रीगणेशा
छानच!
21 Sep 2022 - 9:11 am | ज्ञानोबाचे पैजार
तुझ्या एका अबोल्याशी
आता माझाही अबोला,
बघतेच किती वेळ
झुलतो हा खेळझुला!
ह्या ओळी वाचताना काळजात हलकिशी कळ उमटली. भावना कशी चपखल उतरली आहे शब्दात.
प्राचीताई शब्दांच्या जादुगार आहेत खर्या,
पैजारबुवा,
21 Sep 2022 - 12:08 pm | खेडूत
सुरेख कविता!
त्याने धरला म्हणून
नको धरू तू अबोला
आर्त नजरेत एका
जाई विरुन अबोला.
21 Sep 2022 - 12:15 pm | ज्ञानोबाचे पैजार
त्याने धरला म्हणून
नको धरू तू अबोला
तुझ्या धारदार नजरेने एका
जाईल विरुन अबोला.
(धारदार नजरेच्या धारेखाली आयुष्य कंठणारा) पैजारबुवा,
22 Sep 2022 - 5:38 pm | प्राची अश्विनी
हाहा!
21 Sep 2022 - 1:12 pm | श्वेता२४
.
21 Sep 2022 - 6:59 pm | चौथा कोनाडा
व्वा, सुंदर!
आवडला अबोला, पण लवकर संपवा बुवा !
22 Sep 2022 - 5:38 pm | प्राची अश्विनी
:):)
21 Sep 2022 - 7:10 pm | मिसळलेला काव्यप्रेमी
खेळझुला.. वाह! नादमयी!
22 Sep 2022 - 9:02 am | प्रचेतस
खूपच सुरेख
22 Sep 2022 - 5:34 pm | प्राची अश्विनी
सर्वांना मनापासून धन्यवाद!
22 Sep 2022 - 7:16 pm | चांदणे संदीप
प्राचीतैंची अजून एक सुंदर रचना. वाखूसा आहे.
मीही मागे एक अबोल्यावर अबोला नावाचीच एक कविता लिहिली पण ती अतिशय गंभीर स्वरूपाची आहे. ही मात्र पुन्हापुन्हा वाचावी अशीच आहे.
सं - दी - प
23 Sep 2022 - 4:26 pm | ज्ञानोबाचे पैजार
प्राचीतैंची अजून एक सुंदर रचना. वाखूसा आहे.
मीही मागे एक अबोल्यावर (मुलिंनी धरु नये अबोला) नावाचीच एक कविता लिहिली ती पण अतिशय गंभीर स्वरूपाची आहे. ही मात्र पुन्हापुन्हा वाचावी अशीच आहे.
पै - जा - र - बु - वा - ,
23 Sep 2022 - 4:48 pm | चांदणे संदीप
मा - ऊ - ली
_________/\_________
सं - दी - प
22 Sep 2022 - 8:11 pm | अनन्त्_यात्री
कविता वाचत असल्याचा भास झाला!
26 Sep 2022 - 6:50 pm | विजुभाऊ
खरेच मलाही अगदी हेच वाटले.
23 Sep 2022 - 9:29 am | प्राची अश्विनी
चांदणे संदीप आणि अनंतयात्री, धन्यवाद!
26 Sep 2022 - 3:09 pm | श्वेता व्यास
खूप सुरेख कविता!
26 Sep 2022 - 9:12 pm | अभिजीत अवलिया
सुरेख कविता.
1 Oct 2022 - 6:17 am | प्राची अश्विनी
विजुभाऊ, अभिजित आणि श्वेता.. धन्यवाद!