तिची साधीशी कविता
माझा अर्थाचा गोंधळ
काळेसावळे ते ढग
तिचा सखा घननीळ |
तिची साधीशी कविता
शोध अंतरीचा घेई
खोल विरहाचे दु:ख
अलगद वर येई |
तिची साधीशी कविता
म्हणे तुझी माझी भेट
आज वसंत बहर
पुढे वैशाखाची वाट |
तिची साधीशी कविता
थोडे डोळे पाणावती
दोन मोतियांचे अश्रु
तिच्या गाली ओघळती |
तिची साधीशी कविता
माझ्या गळा एक मिठी
शब्द विरुनिया गेले
अर्थ एक दोघा ओठी !!
( पुर्वप्रकाशित )
प्रतिक्रिया
25 Nov 2014 - 8:10 pm | गणेशा
अ हा हा.. काय मस्त शब्द . या दोन शब्दांनीच मस्त वाटले.
संपुर्ण कविताही छान.
एखादी माझी पण पुर्वप्रकाशीत कवितादेवु म्हणतो.. हि कविता वाचल्याने आठवण झाली जुन्या कवितांची
25 Nov 2014 - 9:48 pm | स्वप्नज
आवडली...
25 Nov 2014 - 10:37 pm | अत्रुप्त आत्मा
झक्कास...! ए१
25 Nov 2014 - 10:52 pm | प्रचेतस
मस्तच रे प्रगो
26 Nov 2014 - 12:08 am | पाषाणभेद
अतिशय सुंदर!
26 Nov 2014 - 1:28 am | बॅटमॅन
वा रे डॉन. लयच भारी!
26 Nov 2014 - 7:14 am | चाणक्य
छान. भावना आणि लय, दोन्ही छान
26 Nov 2014 - 9:50 am | अजया
सुरेख कविता.आवडली.
26 Nov 2014 - 9:51 am | सतिश गावडे
सुंदर कविता !!!
26 Nov 2014 - 9:55 am | पिलीयन रायडर
सुंदर!
26 Nov 2014 - 10:02 am | नाखु
तिची साधीशी कविता
हे खास जबराट
26 Nov 2014 - 10:19 am | कवितानागेश
किती गोड लिहिलय....
26 Nov 2014 - 11:53 am | माधुरी विनायक
सुरेख कविता... आवडली...
26 Nov 2014 - 11:57 am | सूड
लोटे, तांब्ये, धोतरांच्या भाऊगर्दीत ही अतिशय सुंदर कविता बघून बरं वाटलं. :)
26 Nov 2014 - 12:02 pm | डॉ सुहास म्हात्रे
साध्या शब्दांतली पण अर्थपूर्ण आणि भावगर्भ कविता... खूप भावली !
26 Nov 2014 - 1:00 pm | पैसा
खूप सुंदर लिहिलंय!
26 Nov 2014 - 1:07 pm | सस्नेह
साधीशी आहे म्हणूनच आवडली.
गिर्जातै कवितापण करतात वाट्ट !
26 Nov 2014 - 1:17 pm | प्रसाद गोडबोले
आधी कविता सुचायची... रादर आधी बरेच काही सुचायचे
डु आयडी १ ने लेखन
डु आयडी २ ने लेखन
पण नंतर नंतर लोकं माझे डु आयडी अगदी सहज पकडायला लागली म्हणुन मग लेखन कमी केलं :D
26 Nov 2014 - 5:43 pm | सूड
राष्ट्रकाकू आहेत त्या !! 'राष्ट्रकाकू गिर्जा' ;)
26 Nov 2014 - 2:51 pm | मिसळलेला काव्यप्रेमी
सुंदर.. __/\__!
26 Nov 2014 - 8:04 pm | मित्रहो
सुंदर कविता आवडली
1 Nov 2015 - 2:12 pm | निलम बुचडे
http://www.misalpav.com/node/33499#comment-763651
पण ही साधीशीच कविता खूप छान वाटते
1 Nov 2015 - 2:13 pm | अभ्या..
हायला गिर्जा भारी लिव्हतो.
मला वाटले नुसताच भांडतो. ;)
1 Nov 2015 - 9:38 pm | यशोधरा
Kiti surekh lihile Aahes Prago!! Sundar!!
2 Nov 2015 - 2:44 am | रातराणी
मस्त! पुन्हा लिहा कविता!
2 Nov 2015 - 6:33 am | शिव कन्या
फार हळवी कविता!
किती आठवणी परतून आल्या !
2 Nov 2015 - 7:30 am | दमामि
या एका कवितेसाठी, १००अपराध(चुकून कधी जर केले तर)माफ व्हावेत!
2 Nov 2015 - 9:04 am | चांदणे संदीप
मस्तच!
2 Nov 2015 - 3:19 pm | नीलमोहर
प्रगोंचे मानसशास्त्राशी संबंधित लेखन आवडते, हा पैलूही आवडला.
नवीन रचनेच्या प्रतिक्षेत..
2 Nov 2015 - 3:22 pm | वेल्लाभट
साधी सुंदर रचना
सुरेख शेवट...
मस्त.