सुखाचिये शोधी | भ्रमसी रे वाया |
अंतरीचा ठेवा | पाहसी ना ||
जगी या मांडल्या | सुखाचिया पेठा |
सुख घेता ओठा | नष्ट शून्य ||
दया करोनिया | संते दिले गुज |
रामनाम बीज | उच्चारी तू ||
नामे उद्धरिल्या | पापियांच्या व्यथा |
तुझी काय कथा | सांगसी तू ||
सागर लहरी | अनंत उठती |
शमवुनी चित्ती| शांत व्हावे ||
- सागरलहरी
प्रतिक्रिया
3 Mar 2009 - 2:34 pm | लिखाळ
वाहवा .... फारच मस्त.. सागरलहरीचे कडवे तर मस्तच !
जय जय रघुवीर समर्थ !!
-- लिखाळ.
3 Mar 2009 - 4:50 pm | चाणक्य
असेच म्हणतो
3 Mar 2009 - 10:34 pm | अवलिया
असेच म्हणतो
--अवलिया
3 Mar 2009 - 2:54 pm | राघव
अतिशय सुंदर लिहिलेत! प्रचिती असेल अशीच तर क्या बात है!! :)
येऊ देत अजून.. लिखाळरावांशी सहमत.
मुमुक्षु
3 Mar 2009 - 10:32 pm | प्राजु
अतिशय सुंदर रचना. :)
- (सर्वव्यापी)प्राजु
http://praaju.blogspot.com/
4 Mar 2009 - 9:09 pm | क्रान्ति
खूप छान! संत कवींची रचना वाटते आहे अगदी.
क्रान्ति