पिछली चांद की रात तो बरसी बहुत
हम फिरभी अपनी तिश्नगी साथ लिये लौटे
अजीब है ये वाक़या, मगर
बात हुई ही नही
दूर उफ़क की लकीर सुर्ख हो चली थी
उनके आमद की खबर गर्म हो चली थी
सुनते है वो आये तो थे
कायनात पे छाये तो थे
हम न जाने किस चांद की
याद मे मसरूफ़ थे के
बात हुई ही नही
जो बात रात रात भर बारीशे करते है
इस जमी से
शायद आसमा के पैगाम हो
इस जमी के नाम जैसे
ऐसे ही वो बात जो हमे
उनसे करनी थी
रातें गुजरी
मगर बात हुई ही नही
ना चांद रुका
ना उफ़क पंछि रुका
और ना ही बारीशे रुकि
रातें बिती, हा हमपे बिती
मगर आखिर
बात हुई ही नही
|-मिसळलेला काव्यप्रेमी-|
(२४/१०/२०२०)
उफ़क = क्षितिज
आमद = येण्याची चाहूल , सूचना
तिश्नगी = तहान
मसरूफ़ = व्यस्त
सुर्ख = रक्तवर्णी
( शुद्धलेखनाच्या चुका माफ करा, मोबल्यावर इतकंच जमलंय )
प्रतिक्रिया
25 Oct 2020 - 11:38 am | संजय क्षीरसागर
पण तिश्नगी, वाक़या, उफ़क, सुनते है ....या दुरुस्त्या सासंना नक्की करायला सांगा.
25 Oct 2020 - 1:22 pm | मिसळलेला काव्यप्रेमी
संक्षीनी सुचवलेल्या दुरुस्त्यांसोबतच मसरुफ मधल्या फ वर पण नुक्ता हवाय
25 Oct 2020 - 11:31 pm | संजय क्षीरसागर
मसरूफ़
25 Oct 2020 - 11:25 pm | ज्ञानोबाचे पैजार
भारी लिहिली आहे, लै म्हणजे लैच आवडली
पैजारबुवा,
26 Oct 2020 - 12:44 am | कवितानागेश
फार दिवसांनी इतकं छान वाचतेय.
26 Oct 2020 - 9:44 am | Bhakti
क्या बात! अप्रतिम!
26 Oct 2020 - 11:28 am | राघव
आवडलं..! बाकी उर्दू शब्दांचा मझा जरा वेगळाच! :-)
अवांतरः शुद्ध हिंदी मधे हे कसं लिहिता येईल असा एक उडता विचार मनात येऊन गेला.
27 Oct 2020 - 10:33 am | प्राची अश्विनी
क्या बात!
27 Oct 2020 - 11:39 am | गवि
क्या बात है मिकाशेठ.
हे वाचून फराजच्या या ओळी आठवल्या:
मिले जब उनसे तो मुबहमसी गुफ़्तगू करना
फिर अपने आपसे सौ सौ वज़ाहतें करनी
27 Oct 2020 - 12:39 pm | मिसळलेला काव्यप्रेमी
कातिल!!
1 Nov 2020 - 12:03 am | संजय क्षीरसागर
मिले जब उनसे तो मुबहमसी गुफ़्तगू करना
फिर अपने आपसे सौ सौ वज़ाहतें करना
ती भेटते त्या वेळी (मी) काही तरी असंबद्ध बोलत रहातो आणि (ती निघून गेल्यावर)... खूप सुरेखसं स्वतःशीच काही तरी बोलत राहतो !
27 Oct 2020 - 3:04 pm | चांदणे संदीप
अशी चारपाच मित्रमंडळी आजूबाजूला गोल करून बसली आहेत. मध्ये एक शेकोटी चांगलीच पेटलीये. रात्रीचा रंग आधिकच गहिरा होत चाललाय आणि गप्पाही रंगत चालल्यात. अशात कोणीतरी एक विचारतो. "कायरे, परवा आली होती ती, भेटली ना तुला? काय बोलली? जरा सांग किस्सा." तेव्हा जे आतून निघेल ते कदाचित हे असेल.
सं - दी - प
31 Oct 2020 - 5:37 pm | चौथा कोनाडा
http://www.misalpav.com/comment/1084695#comment-1084695
8 Nov 2020 - 1:56 pm | गणेशा
ना चांद रुका
ना उफ़क पंछि रुका
और ना ही बारीशे रुकि
रातें बिती, हा हमपे बिती
मगर आखिर
बात हुई ही नही
लाजवाब... मिका is great... only great