कधी काळजाला समेचा दिलासा..
मुखी शब्द, नि:शब्द.. उगा पोळलेला!
तसे बंध कुठले-कधी जाणिवेला
ओठां-मनाचा पुन्हा मेळ झाला!
नको तेच कडवे मनी आळविले!
हृदया ’कळा’या तरी वेळ गेला..
असे काय होते उरी प्राक्तनाच्या..
अवधान चुकले, पुन्हा घोळ झाला..!
अरे, राघवा, हे पुन्हा तेच झाले..
मनी.. भावनांनी.. कल्लोळ केला..!!
राघव
प्रतिक्रिया
16 Sep 2013 - 9:30 pm | पैसा
कविता आवडली.
16 Sep 2013 - 9:57 pm | कवितानागेश
फार सुंदर.
17 Sep 2013 - 7:00 am | स्पंदना
सुरेख!
17 Sep 2013 - 8:57 am | आतिवास
कविता आवडली.
17 Sep 2013 - 9:08 am | सुधीर
कविता आवडली.
17 Sep 2013 - 10:52 am | मूकवाचक
+१
20 Sep 2013 - 7:04 pm | निरन्जन वहालेकर
" नको तेच कडवे मनी आळविले!
हृदया ’कळा’या तरी वेळ गेला " सुरेख !
आवडली कविता ! !
20 Sep 2013 - 7:42 pm | प्यारे१
छान कविता!
20 Sep 2013 - 8:04 pm | वेल्लाभट
आवडलीय !!!!
30 Sep 2013 - 10:47 am | मदनबाण
मस्त !
30 Sep 2013 - 11:12 am | यशोधरा
सुरेख रे राघवा!
30 Sep 2013 - 2:11 pm | अभ्या..
एकदम छान. आवडली. :)
1 Oct 2013 - 8:23 pm | पद्मश्री चित्रे
आवडली कविता.