जाग

मनीषा's picture
मनीषा in दिवाळी अंक
27 Oct 2013 - 9:55 am

जाग
उसळती काळोखाच्या बहु लाटा अंबरात
किनार शुभ्र रुपेरी खुलते कृष्णमेघात ॥
तम गर्द दाटलेले काजळी दशदिशात ॥
शुक्र चांदणी एकली लखलखे निमिषात ॥
रजनी विसावलेली धरेवरी शांत शांत
चाहूल असे तिजला हलके येई प्रभात ॥
मधुगंधी गार वारा वाहतो शीळ घालीत
डोलतात वृक्षवेली अंगांग भिजे दवात ॥
गवताच्या सान पाती लवलवती तालात
फुले फुले उमलुनी बहरला आसमंत ॥
उडती गाती ते पक्षी विहरती आनंदात
जागी होत वसुंधरा नाहतसे सोन्यात ॥

-- मनीषा

दिवाळी अंक २०१३

प्रतिक्रिया

पैसा's picture

1 Nov 2013 - 9:21 pm | पैसा

अगदी चित्रदर्शी कविता!

प्रभाकर पेठकर's picture

2 Nov 2013 - 9:54 am | प्रभाकर पेठकर

सुंदर काव्यात्म पहाटवर्णन. पहाटेची प्रसन्नता अंगांग रोमांचित करणारी आहे.

वेल्लाभट's picture

3 Nov 2013 - 9:21 am | वेल्लाभट

पहाटेचं सुरेख वर्णन ! वा

चित्रदर्शी कविता अतिशय आवडली!

इन्दुसुता's picture

6 Nov 2013 - 6:34 am | इन्दुसुता

छान आहे कविता

अनन्न्या's picture

6 Nov 2013 - 6:19 pm | अनन्न्या

प्रसन्न पहाट समोर उभी राहिली.

स्पंदना's picture

11 Nov 2013 - 4:49 am | स्पंदना

मस्त..!!