धगधगे कोटी सूर्यांचे
स्थंडिल अहर्निश जेथे
का अनादि ब्रह्माण्डाचे
लघुरूप जन्मते तेथे ?
अणुगर्भ कोरुनी बघता
जी अवघड कोडी सुटती
त्या पल्याड पाहू जाता
का शून्य येतसे हाती ?
का अंत असे ज्ञेयाला
की ज्ञान तोकडे ठरते
की सीमा अज्ञेयाची
अज्ञात प्रदेशी वसते ?
प्रतिक्रिया
9 Mar 2017 - 2:51 pm | चांदणे संदीप
पण तुमची एक कविता वाचली की "सखाराम गटणेच्या" चालीवर असे म्हणावेसे वाटते की पुढचा आठवडाभर एखादी चारोळीही वाचू नये! ;)
कृहघ्या!
Sandy
9 Mar 2017 - 3:21 pm | अनन्त्_यात्री
धन्यवाद स॑दीप. कृहघ्या म्हणजे?
9 Mar 2017 - 3:24 pm | चांदणे संदीप
कृपया हलके घ्या! :)
9 Mar 2017 - 4:44 pm | संदीप-लेले
अप्रतिम. थेट विश्र्वनिर्मितीच्या गाभ्यालाच हात घातलात !
10 Mar 2017 - 9:59 am | अनन्त्_यात्री
धन्यवाद, फूत्कार!
10 Mar 2017 - 10:35 am | अत्रुप्त आत्मा
वाह!
10 Mar 2017 - 11:06 am | अनन्त्_यात्री
आत्मब॑ध, धन्यवाद !
10 Mar 2017 - 3:50 pm | शार्दुल_हातोळकर
कविता आवडली !!
11 Mar 2017 - 5:23 pm | अनन्त्_यात्री
धन्यवाद, शार्दूल!
11 Mar 2017 - 6:03 pm | प्राची अश्विनी
आवडली. इतकी धगधगीत की खरंतर "जे देखे रवी" या सदरात जास्त समर्पक ठरेल. :)
16 Mar 2017 - 10:17 am | अनन्त्_यात्री
धन्यवाद प्राची अश्विनी ! निरुत्तर करणाऱ्या प्रश्नांची धग एखाद्या अस्पष्टपणे ऐकू येणाऱ्या मोहक गीतासारखी पिच्छा सोडत नाही !
16 Mar 2017 - 10:46 am | पैसा
कविता खूप आवडली.
16 Mar 2017 - 11:42 am | अनन्त्_यात्री
धन्यवाद, पैसा !
16 Mar 2017 - 8:21 pm | सूड
६ अधिक ६
17 Mar 2017 - 9:56 am | अनन्त्_यात्री
@सूड, स्कोअर-कीपि॓गची अनाहूत सेवा पुरविल्याबद्दल आभार !