मेघ सावळा का नभी एकटा?
तो वाट प्रियेची बघ, पाहतसे
विरह वेळा ही असह्य झाली
प्रियेवीण जगणे ते व्यर्थ असे
सखी प्रिया तव दूर वसुधा
आतुर मिलना मनी कळवळे
सरतील कधी, क्षण विरहाचे?
नभास वेड्या कधी ना कळे...
शल्य त्याचे कुणा ना कळले
हलकेच कसे नभ ओघळले?
विरह वेदना जळी बुडाली..
प्रतिबिंब नभाचे धरेस भेटले...
बघतो आपले प्रतिबिंब जळी
दूर उभा तो नभमंडलावरी..,
नसेच नशिबी भेट प्रियेची...
प्रतिबिंबे भेटती परी ऊरा-ऊरी
विशाल...
फ़ोटो आंतरजालावरून साभार
प्रतिक्रिया
12 Jul 2015 - 12:56 pm | जडभरत
मस्तच!
12 Jul 2015 - 1:26 pm | एक एकटा एकटाच
बघतो आपले प्रतिबिंब जळी
दूर उभा तो नभमंडलावरी..,
नसेच नशिबी भेट प्रियेची...
प्रतिबिंबे भेटती परी ऊरा-ऊरी
Class
12 Jul 2015 - 2:35 pm | टवाळ कार्टा
कवीता मस्तच आहे पण चायला मला यात भरपुर कच्चा मसाला दिसतोय ;)
12 Jul 2015 - 3:15 pm | विशाल कुलकर्णी
नेकी और पुँछ पुँछ ;)
12 Jul 2015 - 3:20 pm | जडभरत
शाब्बास रे पठ्ठ्या! चल येवू दे एक फर्मास तांबिय विडंबन काव्य!
12 Jul 2015 - 4:04 pm | टवाळ कार्टा
नौ...
12 Jul 2015 - 4:11 pm | अत्रुप्त आत्मा
सुंsssssssssदर!!!
12 Jul 2015 - 4:30 pm | विशाल कुलकर्णी
धन्यवाद मंडळी _/\_
12 Jul 2015 - 9:27 pm | रातराणी
वा! क्लास आहे ही कविता!