घराला मनांचा उबारा करु!

सत्यजित...'s picture
सत्यजित... in जे न देखे रवी...
27 Jun 2017 - 6:48 am

नको तेच ते तू दुबारा करु
हवा देउनी मज निखारा करु!

भिजू दे मला तू मिठीशी तुझ्या
पुन्हा पावसाला इशारा करु!

नको मोकळे केस झटकून तू
इथे चांदण्याचा पसारा करु!

खुले केस पाठीवरी सोड ना
खुळ्या मोगऱ्याचा पिसारा करु!

तुझ्या पाउली चंद्र उतरेल तो
कसा मी मला सांग तारा करु!

सखे लाट अनिवार होवून,ये
अता थेंब-थेंबा किनारा करु!

शमावी क्षणातच जिथे वादळे
घराला मनांचा उबारा करु!

—सत्यजित

gajhalgazalमराठी गझलशृंगारकवितागझल

प्रतिक्रिया

अत्रुप्त आत्मा's picture

27 Jun 2017 - 9:14 am | अत्रुप्त आत्मा

व्वाह! फंटॅश्टिक!

सत्यजित...'s picture

27 Jun 2017 - 11:11 pm | सत्यजित...

धन्यवाद!

जेनी...'s picture

27 Jun 2017 - 5:47 pm | जेनी...

:)

सत्यजित...'s picture

27 Jun 2017 - 11:14 pm | सत्यजित...

पण माफ करा,आपला प्रतिसाद उमगला नाही.

जेनी...'s picture

27 Jun 2017 - 11:49 pm | जेनी...

ह्म्म

पुंबा's picture

29 Jun 2017 - 2:50 pm | पुंबा

अहाहा!!
अप्रतिम कविता..

पद्मावति's picture

29 Jun 2017 - 3:48 pm | पद्मावति

सुंदर!

रुपी's picture

30 Jun 2017 - 12:45 am | रुपी

सुरेख!

सत्यजित...'s picture

2 Jul 2017 - 12:34 am | सत्यजित...

सौरा,पद्मावति,रुपी...प्रतिसादाबद्दल मनापासून धन्यवाद!