नजरोंको चुराकर वो...

सत्यजित...'s picture
सत्यजित... in जे न देखे रवी...
21 Jun 2017 - 4:00 am

नजरोंको चुराकर वो,इस तौर से चलते हैं
कुछ हमभी मचलते हैं,कुछ वो भी मचलते हैं

मुमकिन है महोब्बतभी,गर चांद वो ला दो तो
ये चांदके 'टुकडे' तो,बगियामें टहलते हैं

जुगनूंकी तरह यादें..हमको यूं जलाती है
शम्मोंको बुझाकर हम,पुरजोर पिघलते हैं

इनकार तो था लेकिन,नजरें वो झुकायें थे
ये दौर है दुनियाका..पलभरमें बदलते हैं

इन फूलोंकि दुनियामें,हम 'भंवरे' के मानिंद
इस फूलसे निकले तो,उस फूल पे चलते हैं

—भंवर गुनगुन

(हिन्दीतील माझा पहिला प्रयत्न!)

gajhalgazalकवितागझल

प्रतिक्रिया

तुषार काळभोर's picture

21 Jun 2017 - 7:40 am | तुषार काळभोर

मिपासारख्या मराठी अभिव्यक्तीच्या प्लॅटफॉर्मवर किती संयुक्तिक आहे, माहिती नाही. पण गजल खरंच छान आहे.

सत्यजित...'s picture

27 Jun 2017 - 11:10 pm | सत्यजित...

धन्यवाद!