"रायगडाला लाज आली ... " कारण आम्ही विसरलो !!!
ग्रहण सूर्यास लागे
पापभारे धरती डोले
अंधःकार घनघोर
पसरे पारतंत्र्याचा |
रयत दीन बिचारी
त्राही त्राही होई
जुलमी फौजा शाही
लुटती दिशा दाही |
मंदिरात देव नाही
वावरात माणुस नाही
आक्रोशे काळी आई
वैभवास वारस नाही |
गोमाता भयभीत
गृहलक्ष्मी चिंताक्रांत
घरधनी जाई रणी
रक्षिण्या तीज न कुणी |
अधर्म असा भयंकर
माजला हाहा:कार
म्लेंच्छास निर्दाळण्यास
अवतरी तारणहार |
म्लेंच्छास त्या मारीन
स्वराज्यास स्थापीन
शपथ घेसी तु
रायरेश्वरा स्मरुन |
ती नजर तुझी करारी
फिरे सह्याद्रीवरी
आतुर लावण्या भगवा
गडकोट किल्ल्यांवरी |
रणशिंग करी नाद
भगवा डोले गगनात
करी पराक्रमाची शर्थ
रणांगणी झुंझण्यात |
बादशाही थरारे
सिद्धी, गोरे नमले
जिंजीचेही राज्य जिंकीले
ध्वज स्वराज्याचा डोले |
छत्र धरे मस्तकी
वरदान भवानीचे हाती
स्वातंत्र्याचा गोंधळी
आईचा पोत नाचवी |
लेकी, सुना सुखावती
मातीतुन पिकती मोती
सुखाची वर्षा करी
गगन मस्तकावरी |
धन्य होई जिजामाता
सुखावे सारी प्रजा
सह्यगिरी हर्षित
तु शिवकल्याण राजा
तु शिवकल्याण राजा !!!
प्रतिक्रिया
8 Aug 2008 - 9:35 am | घाटावरचे भट
--आपलेच (आणि घाटावरचे) भट...
उत्तिष्ठत, जाग्रत, प्राप्य वरान्निबोधत ~ स्वामी विवेकानंद
8 Aug 2008 - 9:42 am | यशोधरा
सुरेख!
8 Aug 2008 - 9:49 am | सर्किट (not verified)
खूपच छान कविता !
ही तुम्ही जालावरच प्रकाशित केली हे नकीच.
कृपया "जालकवी सम्मेलनासाठी" द्यावी ही विनंती.
- सर्किट
10 Aug 2008 - 1:07 pm | मनीषा
" जालकवी सम्मेलनासाठी " ही कविता जरुर देईन .
8 Aug 2008 - 2:42 pm | मृगनयनी
जबरदस्त!!!
अंग शहारले....
प्रसंग अक्षरशः.. डोळ्यांसमोर उभे राहिले.....
अजून येऊ द्यात......:)
8 Aug 2008 - 3:21 pm | स्वाती दिनेश
कवितारुपी भाष्य आवडले!
स्वाती
8 Aug 2008 - 3:27 pm | आनंदयात्री
काव्य खुपच छान आहे. रोमांचित करणारे.
8 Aug 2008 - 3:58 pm | शिंगाड्या
बुलंद काव्य!
8 Aug 2008 - 4:50 pm | प्राजु
तोड नाही...
- (सर्वव्यापी)प्राजु
http://praaju.blogspot.com/
8 Aug 2008 - 7:28 pm | संदीप चित्रे
खूपच आवडली कविता ... अगदे योग्य शब्द निवडले आहेत :)
8 Aug 2008 - 11:02 pm | विसोबा खेचर
छत्र धरे मस्तकी
वरदान भवानीचे हाती
स्वातंत्र्याचा गोंधळी
आईचा पोत नाचवी
के व ळ सु रे ख...! अन्य शब्द नाहीत!
मनीषाताई, मनपूर्वक धन्यवाद! मिपाला वैभवशाली बनवणारं, दर्जेदार बनवणारं अतिशय सुरेख काव्य!
तात्या.
9 Aug 2008 - 3:05 am | चतुरंग
वाचून भारावलो!
नतमस्तक!!
चतुरंग
9 Aug 2008 - 3:48 am | प्रियाली
सुंदर काव्य.
9 Aug 2008 - 4:31 pm | बिपिन कार्यकर्ते
सुंदर काव्य.
काही कडवी वाचताना अक्षरशः ते दृश्य उभे राहिले डोळ्यांसमोर. खूपच सुंदर.
रणशिंग करी नाद
भगवा डोले गगनात
करी पराक्रमाची शर्थ
रणांगणी झुंझण्यात |
बिपिन.
10 Aug 2008 - 12:34 am | चिन्या१९८५
सुंदर्!!!भारच छान्.इतके चांगले काव्य लिहीण्यासाठी धन्यवाद.
10 Aug 2008 - 1:02 am | पक्या
वा सुरेख काव्य. आवडले.
10 Aug 2008 - 1:11 pm | मनीषा
मनःपुर्वक आभार .
10 Aug 2008 - 7:52 pm | मदनबाण
फारच सुंदर....
म्लेंच्छास त्या मारीन
स्वराज्यास स्थापीन
शपथ घेसी तु
रायरेश्वरा स्मरुन |
हे फार आवडल..
मदनबाण.....
"First, believe in the world-that there is meaning behind everything." -- Swami Vivekananda
19 Feb 2013 - 1:30 pm | मनीषा
जाणत्या राजास विनम्र अभिवादन !
19 Feb 2013 - 1:30 pm | मनीषा
जाणत्या राजास विनम्र अभिवादन !
19 Feb 2013 - 1:47 pm | मिसळलेला काव्यप्रेमी
शिवराय परत या....