आदाब अर्ज है !( २६-०७-११) हार जाने का हौसला है मुझे.........

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अश्फाक in जे न देखे रवी...
28 Mar 2010 - 11:47 am

आपल्या सुचना आणि प्रतिक्रिया माझ्यासाठी अमुल्य आहेत, प्रतिक्षेत .........

२६-०७-११

ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे ! ( गिला = तक्रार )
तू बहुत देर से मिला है मुझे !!

हमसफ़र चाहिये हुजूम नहीं ! ( सहप्रवासी हवा गर्दी नको )
इक मुसाफ़िर भी काफ़िला है मुझे !!

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल !
हार जाने का हौसला है मुझे !!

लब कुशां हूं तो इस यकीन के साथ ! ( लब कुशां = तोंड उघडने )
कत्ल होने का हौसला है मुझे !!

दिल धडकता नहीं सुलगता है !
वो जो ख्वाहिश थी, आबला है मुझे!! ( आबला = छाला )

कौन जाने कि चाहतो में फ़राज़ !
क्या गंवाया है क्या मिला है मुझे!!

अहमद फराझ.

२३-६-१०

मै बताउ फर्क नासेह जो है तुझ मे और मुझ मे! ( नासेह = नसिहत्/सल्ला देनारे )
मेरि जिन्दगी तलातुम तेरि जिन्दगी किनारा !! ( तलातुम = तुफान )

मै यु हि रवा-दवा था किसि बहर-ए-बेकरा(र) मे! ( रवा-दवा = भरकटलेला , बहर-ए-बेकरा = अशात समुद्र )
किसि प्यार कि सदा ने मुझे दुर से पुकारा!! ( सदा = पुकारा )

प्यार के मोड पर मिल गये हो अगर !,
यु हि मिलने मिलाने का वादा करो !!

हम ने माना मोहब्बत का दस्तुर है ! ( दस्तुर = पध्दत )
हुस्न कि हर अदा हम को मन्जुर है!!

रुठना है जरुरी तो रुठो मगर!
बाद मे मान जाने का वादा करो!!

३-६-१०

अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको!
मैं हूँ तेरा नसीब अपना बना ले मुझको!!

मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के मानी! ( मानी = अर्थ )
ये तेरी सादा दिली मार न डाले मुझको !!

तूने देखा नहीं आईने से आगे कुछ भी!
ख़ुदपरस्ती में कहीं तू न गँवा ले मुझको!! ( ख़ुदपरस्ती = स्वत ला पुजने )

कल की बात और है मैं अब सा रहूँ या न रहूँ!
जितना जी चाहे तेरा आज सता ले मुझको!!

ख़ुद को मैं बाँट न डालूँ कहीं दामन-दामन!
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको!!

मैं जो काँटा हूँ तो चल मुझसे बचाकर दामन!
मैं हूँ गर फूल तो जूड़े में सजा ले मुझको!!

तर्क-ए-उल्फ़त की क़सम भी कोई होती है क़सम! ( तर्क-ए-उल्फ़त = प्रेम तर्क करने )
तू कभी याद तो कर भूलने वाले मुझको!!

वादा फिर वादा है मैं ज़हर भी पी जाऊँ "क़तील"!
शर्त ये है कोई बाँहों में सम्भाले मुझको!!

कतिल शिफाइ.

२१-५-१०

मोअतबर दिल को तेरी याद बना देती है! ( मोअतबर= विश्वसनिय )
आशिकी फूल को फरहाद बना देती है !!

( तुझी आठवन आली की ह्रद्याला शान्ती,विश्वास वाटतो )
( प्रेमात काय जादु आहे कोन जाने ?
जे फुला सारख्या नाजुक व्यक्तीला फरहाद सारखे खंबिर बनवते )

पुरशिकम लोग जंग नही लडा करते ! ( पुरशिकम = पोट भरलेले )
भुक इन्सान को फौलाद बना देती है!!

१८-५-१०

यह एहतराम तो करना ज़रूर पड़ता है! (एहतराम करना = मान ठेवने.)
जो तू ख़रीदे तो बिकना ज़रूर पड़ता है!!

बड़े सलीक़े से यह कह के ज़िन्दगी गुज़री! ( सलीक़े से = पद्धत्शीर )
हर एक शख़्स को मरना ज़रूर पड़ता है!! ( शख़्स = व्यक्ती )

वो दोस्ती हो मुहब्बत हो चाहे सोना हो!
कसौटियों पे परखना ज़रूर पड़ता है!!

कभी जवानी से पहले कभी बुढ़ापे में!
ख़ुदा के सामने झुकना ज़रूर पड़ता है!!

हो चाहे जितनी पुरानी भी दुश्मनी लेकिन!
कोई पुकारे तो रुकना ज़रूर पड़ता है!!

वफ़ा की राह पे चलिए मगर ये ध्यान रहे!
की दरमियान में सहरा ज़रूर पड़ता है.!! ( सहरा = वाळवंट )

मुनव्वर राना.

१२-५-१०

बीमार को मर्ज़ की दवा देनी चाहिए!
वो पीना चाहता है पिला देनी चाहिए!!

अल्लाह बरकतों से नवाज़ेगा इश्क़ में! ( बरकतों से = क्रुपा ज्याने वाढेल )
है जितनी पूँजी पास लगा देनी चाहिए!!

ये दिल किसी फ़कीर के हुज़रे से कम नहीं!
ये दुनिया यही पे लाके छुपा देनी चाहिए!!

मैं फूल हूँ तो फूल को गुलदान हो नसीब! ( गुलदान= flowerpot )
मैं आग हूँ तो आग बुझा देनी चाहिए!!

मैं ख़्वाब हूँ तो ख़्वाब से चौंकाईये मुझे!
मैं नीद हूँ तो नींद उड़ा देनी चाहिए!!

मैं जब्र हूँ तो जब्र की ताईद बंद, हो!! ( जब्र= जोरजबरदस्ती , ताईद = समर्थन )
मैं सब्र हूँ तो मुझ को दुआ देनी चाहिए!!

मैं ताज हूँ तो ताज को सर पे सजायें लोग!
मैं ख़ाक हूँ तो ख़ाक उड़ा देनी चाहिए!!

सच बात , कौन है जो सरे-आम कह सके ?
मैं कह रहा हूँ , मुझको सजा देनी चाहिए !!

सौदा यही पे होता है हिन्दोस्तान का !
संसद भवन में आग लगा देनी चाहिए!!

राहत इन्दोरी .

८-५-१०

पहलु मे दिल बदलता है, पहलु संभालिये! ( पहलु मे = बगल मधे/बाजुला )
मेहफील मे आता है कोइ दस्त-ए-हिना लिये!! ( दस्त-ए-हिना= मेहंदी लावलेले हाथ )

तबअं(न) मेरी नजर बुरी नही मगर हुजुर ! ( तबअं(न)= पिंडाने , स्वाभावाने / तबीयतने )
कुछ आप भी तो अपनी नजर को संभालिये!!

गुमनाम.

७-५-१०

जहा तक हो सके हमने तुम्हे परदा कराया है !
मगर ऐ आसुओ तुम ने बडा रुसवा कराया है !! ( रुसवा = बदनाम )

चमक ऐसे नही आती है, खुद्दारी कि, चेहरे पर ! ( खुद्दारी = आत्मनिर्भरता )
अना को हम ने दो दो वक्त का फाका कराया है !! ( अना = आत्मसन्मान / फाका = उपासमार)

मुनव्वर राना .

५-५-१०

अंजाम उसके हाथ है आगाज कर के देख ! ( शेवट परमेश्वराच्या हातात आहे , सुरवात करुन तर बघ )
भिगे हुए परो से ही परवाज कर के देख !! ( चिंब भिजलेल्या पंखांनी उडुन तर बघ )

नवाज देवबंदी .

३-५-१०

राना कभी शाहों की ग़ुलामी नहीं करता.........

हम दोनों में आँखें कोई गीली नहीं करता!
ग़म वो नहीं करता है तो मैं भी नहीं करता!!

मौक़ा तो कई बार मिला है मुझे लेकिन!
मैं उससे मुलाक़ात में जल्दी नहीं करता!!

वो मुझसे बिछड़ते हुए रोया नहीं वरना!
दो चार बरस और मैं शादी नहीं करता!!

वो मुझसे बिछड़ने को भी तैयार नहीं है!
लेकिन वो बुज़ुर्गों को ख़फ़ा भी नहीं करता!! ( बुज़ुर्गों = वडिलधारे, ख़फ़ा = नाराज )

ख़ुश रहता है वो अपनी ग़रीबी में हमेशा!
‘राना’ कभी शाहों की ग़ुलामी नहीं करता!! ( शाह = बादशाह )

मुनव्वर राना .

२-५-१०

हमारे कुछ गुनाहों की सज़ा भी साथ चलती है !
हम अब तन्हा नहीं चलते दवा भी साथ चलती है!! ( तन्हा=एकटे )

अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कुछ हो नही सकता !
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है!!

मुनव्वर राणा .

१-५-१०

आज फिर कोई भूल की जाए.........

दोस्ती जब किसी से की जाए !
दुश्मनों की भी राए ली जाए !!

मौत का ज़हर है फ़िज़ाओं में ! (फ़िज़ाओं = हवाये )
अब कहां जा के सांस ली जाए !!

मेरे माज़ी के ज़ख्म भरने लगे ! (माज़ी = भुतकाल)
आज फिर कोई भूल की जाए !!

बोतलें खोल के तो पी बरसों !
आज दिल खोल के भी पी जाए !!

राहत इन्दौरी

३०-४-१०

उन घरों में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं!
क़द में छोटे हों मगर लोग बड़े रहते हैं!!

जो भी दौलत थी वो बच्चों के हवाले कर दी!
जब तलक मैं नहीं बैठूँ ये खड़े रहते हैं !!

मैंने फल देख के इन्सानों को पहचाना है!
जो बहुत मीठे हों अंदर से सड़े रहते हैं!!

मुनव्वर राणा .

२९-४-१०

इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जायेगा ............

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जायेगा!
इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जायेगा !!

हम भी दरिया हैं अपना हुनर मालूम है !
जिस तरफ भी चले जायेंगे रास्ता हो जायेगा !!

इतनी सचाई से मुझसे जिंदगी ने कह दिया !
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जायेगा !!

मै खुदा का नाम लेकर पी रहा हूँ दोस्तों !
जहर भी अगर इसमें होगा दवा हो जायेगा !!

सब उसी के हैं हवा खुशबू ज़मीनों आसमान !
मै जहाँ भी जाऊंगा उसे पता हो जायेगा !!

dr.bashir badar

२८-४-१०

होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते...

साहिल पे समन्दर के खजाने नहि आते!
होटो पे मोहोब्बत के फसाने नहि आते!!

सोते मे चमक उठति है पलके हमारी!
आन्खो को अब ख्वाब छुपाने नही आते.!! ( पुर्वप्रकाशीत २७-३-१० ला )

पुढे ........

दिल उजड़ी हुई इक सराये की तरह है! ( सराये = धर्मशाला )
अब लोग यहाँ रात जगाने नहीं आते!!

उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में! ( शोख़ = अवखळ )
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते!!

इस शहर के बादल तेरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैं! ( ज़ुल्फ़ों = केस )
ये आग लगाते हैं बुझाने नहीं आते!!

अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गये हैं! ( अहबाब = दोस्त )
आते हैं मगर दिल को दुखाने नहीं आते...!!

२७-४-१०

न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये .....

कभी तो आसमाँ से चांद उतरे जाम हो जाये! (जाम = प्याला)
तुम्हारे नाम की इक ख़ूबसूरत शाम हो जाये!!

हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाये !
चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाये!!

अजब हालात थे यूँ दिल का सौदा हो गया आखिर! (अजब = विचित्र )
मोहबात की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाये !!

समंदर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको!
हवायेँ तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाये!!

मैं एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ! ( एहतियातन = काळ्जीपुर्वक )
कोई मासूम क्यों मेरे लिये बदनाम हो जाये !!

मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा!
परिंदा आसमाँ छूने में जब नाक़ाम हो जाये !!

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो !
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये!!

--बशीर बद्र

२६-४-१०

सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं!
मांगा ख़ुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं!!

सोचा तुझे, देखा तुझे चाहा तुझे मांगा तुझे !
मेरी वफ़ा मेरी ख़ता, तेरी ख़ता कुछ भी नहीं!!

जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाये रात भर!
भेजा वही काग़ज़ उसे हमने लिखा कुछ भी नहीं!!

इक शाम की दहलीज़ पर बैठे रहे वो देर तक!
आँखों से की बातें बहुत मुँह से कहा कुछ भी नहीं!!

दो चार दिन की बात है दिल ख़ाक में सो जायेगा!
जब आग पर काग़ज़ रखा बाकी बचा कुछ भी नहीं!!

अहसास की ख़ुश्बू कहाँ आवाज़ के जुगनू कहाँ!
ख़ामोश यादों के सिवा घर में रहा कुछ भी नहीं!!

२५-४-१०

आँख से अश्क़ भले ही न गिराया जाये !
पर मेरे गम को हँसी में न उड़ाया जाये !!

तू समंदर है मगर मैं तो नहीं हूँ दरिया ! ( दरिया = नदी )
किस तरह फ़िर तेरी दहलीज़ पे आया जाये !!

दो कदम आप चलें तो मैं चलूँ चार कदम !
मिल तो सकते हैं अगर ऐसे निभाया जाये !!

मुझे पसंद है खिलता हुआ, टहनी पे गुलाब !
उसकी जिद है कि वो, जुड़े में सजाया जाये !!

मेरे जज़्बात ग़लत, मेरी हर इक बात ग़लत ! ( जज़्बात = भावना )
ये सही तो है मगर कितना जताया जाये !!

लाख अच्छा सही वो फूल मगर मुरदा है !
कब तलक उसको किताबों में दबाया जाये !!

रोशनी तुमको उधारी में भी मिल जायेगी !
पर मज़ा तब है कि, जब घर को जलाया जाये !

ललित मोहन त्रिवेदी

२४-४-१०

सियासत किस हुनरमंदी से सच्चाई छुपाती है ! ( सियासत = राजकारण , हुनरमंदी = खुबीने )
जैसे सिसकियो का जख्म शहनाइ छुपाती है !!

जो ईस की तह मे जाता है वापस नही आता! ( तह = तळ )
नदी हर तैरने वाले से गहराइ छुपाती है !!

ये बच्ची चाहती है और कुछ दिन मा को खुश रखना!
ये कपडो की मदद से अपनी लम्बाई छुपाती है !!

मुनव्वर राणा .

२३-४-१०

अँधेरे चारों तरफ़ सायं-सायं करने लगे!
चिराग़ हाथ उठाकर दुआएँ करने लगे!!

सलिका जिन को सिखाया था हम ने चलने का! ( सलिका = पध्दत )
वो लोग आज हमे दाये बाये करने लगे !! ( दाये बाये = उजवा डावा <दुर्लक्षित करने > )

तरक़्क़ी कर गए बीमारियों के सौदागर! ( बीमारियों के सौदागर = डोक्ट्र्र , दवाखाने ई. )
ये सब मरीज़ हैं जो अब दवाएँ करने लगे!!

लहूलुहान पड़ा था ज़मीं पे इक सूरज!
परिन्दे अपने परों से हवाएँ करने लगे!!

ज़मीं पे आ गए आँखों से टूट कर आँसू!
बुरी ख़बर है फ़रिश्ते ख़ताएँ करने लगे!!

झुलस रहे हैं यहाँ छाँव बाँटने वाले! ( झुलस = झळ लागने )
वो धूप है कि शजर इलतिजाएँ करने लगे!! ( शजर= व्रुक्ष इलतिजाएँ = विनंती )

अजीब रंग था मजलिस का, ख़ूब महफ़िल थी ( मजलिस = सम्मेलन )
सफ़ेद पोश उठे काएँ-काएँ करने लगे!! ( सफ़ेद पोश = पांढरपेशे )

राहत इन्दौरी

२२-४-१०

इसी गली में वो भूखा किसान रहता है!
ये वो ज़मीन है जहाँ आसमान रहता है!!

मैं डर रहा हूँ हवा से ये पेड़ गिर न पड़े!
कि इस पे चिडियों का इक ख़ानदान रहता है!!

सड़क पे घूमते पागल की तरह दिल है मेरा!
हमेशा चोट का ताज़ा निशान रहता है !!

तुम्हारे ख़्वाबों से आँखें महकती रहती हैं!
तुम्हारी याद से दिल जाफ़रान रहता है !! (जाफ़रान = केसर )

हमें हरीफ़ों की तादाद क्यों बताते हो! ( हरीफ़ों की तादाद = साथीदारांची संख्या )
हमारे साथ भी बेटा जवान रहता है!!

सजाये जाते हैं मक़तल मेरे लिये ‘राना’! ( मक़तल = कत्तलखाने )
वतन में रोज़ मेरा इम्तहान रहता है!!

मुनव्वर राणा .

२१-४-१०

तिफली मे सुना करते थे नानी से कहानी ! ( तिफली =बचपन )
बचपन है अगर शोख तो शोला है जवानी!! ( शोख = अवखळ )

जुडे मे सिमट आती है सावन की घटाये ! ( जुडा = केसांचा अंबाडा , सिमटना= एकत्र येणे )
खुल जाये अचानक तो बरस जाता है पानी!!

सागर खय्यामी .

२०-४-१०

ना सुपारी नजर आयी ना सरोता निकला ! ( सरोता = सुपारी कापायचे यंत्र )
मा के बटवे से दुवा निकली वजीफा निकला!! ( बटवा = खिसा,पाकिट / वजीफा = जप )

एक निवाले के लिये मैने जिसे मार दिया ! ( निवाला = घास )
वो परिन्दा भि कई रोज का भुका निकला !!

मुनव्वर राणा .

१९-४-१०

कब लोगों ने अल्फ़ाज़ के पत्थर नहीं फेंके ! ( अल्फ़ाज़= शब्द )
वो ख़त भी मगर मैंने जला कर नहीं फेंके !!

ठहरे हुए पानी ने इशारा तो किया था !
कुछ सोच के खुद मैंने ही पत्थर नहीं फेंके!!

क्या बात है उसने मेरी तस्वीर के टुकड़े !
घर में ही छुपा रक्खे हैं बाहर नहीं फेंके !!

दरवाज़ों के शीशे न बदलवाइए नज़मी !
लोगों ने अभी हाथ से पत्थर नहीं फेंके !!

अख़्तर नज़मी .

१८-४-१०

अब मै समझा तेरे रुखसार पे तिल का मतलब ! ( रुखसार = गाल )
दौलत-ए-हुस्न पे दरबान बिठा रखा है!! ( दरबान= पहारेकरी )

गर सियाह बख्त ही होना था नसीबो मे मेरे ! (गर = अगर्/जर , सियाह =काळा, बख्त= नशीब)
जुल्फ होता तेरे रुखसार पे या तिल होता !! ( जुल्फ= केसांची बट , रुखसार = गाल )

गुमनाम.

१७-४-१०

आते-आते मेरा नाम सा रह गया !
उस के होंठों पे कुछ काँपता रह गया!!

वो मेरे सामने ही गया और मैं !
रास्ते की तरफ देखता रह गया !!

झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गये !
और मैं था कि सच बोलता रह गया!!

आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे!
ये दिया कैसे जलता रह गया !!

वसीम बरेलवी

१६-४-१०

मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं ! ( मुहाजिर = निर्वासीत )
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं !!

कहानी का ये हिस्सा आजतक सब से छुपाया है !
कि हम मिट्टी की ख़ातिर अपना सोना छोड़ आए हैं!!

नई दुनिया बसा लेने की इक कमज़ोर चाहत में !
पुराने घर की दहलीज़ों को सूना छोड़ आए हैं !!

अक़ीदत से कलाई पर जो इक बच्ची ने बाँधी थी ! ( अक़ीदत = विश्वास )
वो राखी छोड़ आए हैं वो रिश्ता छोड़ आए हैं !!

किसी की आरज़ू ने पाँवों में ज़ंजीर डाली थी ! ( आरज़ू = इच्छा )
किसी की ऊन की तीली में फंदा छोड़ आए हैं!! ( ऊन की तीली = लोकर विनायची काडी / फंदा= टोक, छेडा )

पकाकर रोटियाँ रखती थी माँ जिसमें सलीक़े से! ( सलीक़े से= पद्ध्तशीर )
निकलते वक़्त वो रोटी की डलिया छोड़ आए हैं!! (डलिया = टोपली )

जो इक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती है! ( उन्नाव, मोहान = यु.पी. मधील गाव )
वहीं हसरत के ख़्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं!! ( हसरत = इच्छा )

यक़ीं आता नहीं, लगता है कच्ची नींद में शायद!
हम अपना घर गली अपना मोहल्ला छोड़ आए हैं!!

हमारे लौट आने की दुआएँ करता रहता है !
हम अपनी छत पे जो चिड़ियों का जत्था छोड़ आए हैं!!

हमें हिजरत की इस अन्धी गुफ़ा में याद आता है! (हिजरत= स्थलांतर )
अजन्ता छोड़ आए हैं एलोरा छोड़ आए हैं!!

सभी त्योहार मिलजुल कर मनाते थे वहाँ जब थे!
दिवाली छोड़ आए हैं दशहरा छोड़ आए हैं!!

हमें सूरज की किरनें इस लिए तक़लीफ़ देती हैं!
अवध की शाम काशी का सवेरा छोड़ आए हैं!!

गले मिलती हुई नदियाँ गले मिलते हुए मज़हब! (मज़हब = धर्म)
इलाहाबाद में कैसा नज़ारा छोड़ आए हैं!!

हम अपने साथ तस्वीरें तो ले आए हैं शादी की !
किसी शायर ने लिक्खा था जो सेहरा छोड़ आए हैं!! (सेहरा = लग्नात गायचे स्तुतीपर गीत)

मुनव्वर राणा .

१५-४-१०

खुद को कितना छोटा करना पड्ता है!
बेटे से समझौता करना पडता है!!

जब सारे के सारे ही बेपर्दा हो!
ऐसे मे खुद परदा करना पडता है!!

नवाज देवबंदी.

१४-४-१०

मेरे खुलुस की गेहराई से नही मिलते ! ( खुलुस = सह्र्युदता )
ये झुटे लोग है सच्चाइ से नही मिलते !!

मुझे सबक दे रहे है वो मोहब्बत का !
जो ईद अप्ने सगे भाई से नही मिलते !!

राहत ईन्दोरी.

१३-४-१०

ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे! ( गिला = तक्रार , शिकायत )
तू बहुत देर से मिला है मुझे!!

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल! ( तु प्रेमाने मला धोका तर दे ,
हार जाने का हौसला है मुझे!! माझ्यात पराभव पत्करन्याची हिम्मत आहे )

::अहमद फराज

१२-४-१०

जब कभि बोलना वक्त पर बोलना !
मुद्दतो सोचना , मुख्तसर बोलना !! ( मुद्दतो= लांब मुदती पर्यंत ,मुख्तसर = थोडे से )

मेरि खानाबदोशी से पुछे कोइ ! ( खानाबदोशी = अस्थायी , भटके जीवन बंजारो की तरह )
कितना मुश्किल है रस्ते को घर बोलना!!

ताहीर फराझ

११-४-१० रविवार

पेशानियों पे लिखे मुक़द्दर नहीं मिले! ( पेशानियों = कपाळांवर , मुक़द्दर = नशिब )
दस्तार कहाँ मिलेंगे जहाँ सर नहीं मिले!! ( दस्तार = फेटा )

आवारगी को डूबते सूरज से रब्त है! ( रब्त= लगाव्/जवळीक )
मग़्रिब के बाद हम भी तो घर पर नहीं मिले!! ( मग्रिब = सुर्यास्ताची वेळ )

कल आईनों का जश्न हुआ था तमाम रात!
अन्धे तमाशबीनों को पत्थर नहीं मिले!! ( तमाशबीनों = प्रेक्षक )

मैं चाहता था ख़ुद से मुलाक़ात हो मगर!
आईने मेरे क़द के बराबर नहीं मिले!! ( कद्=उंची )

पर्देस जा रहे हो तो सब देखते चलो!
मुम्किन है वापस आओ तो ये घर नहीं मिले!!

राहत ईन्दोरी.

१०-४-१०

लोग हर मोड़ पे रुक रुक के सम्भलते क्यूँ हैं !
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूँ हैं !!

मैं न जुगनू हूँ दिया हूँ न कोई तारा हूँ !
रौशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यूँ हैं !!

नीन्द से मेरा त'अल्लुक़ ही नहीं बरसों से ! ( त'अल्लुक़ = संबंध )
ख़्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यूँ हैं !!

मोड़ होता है जवानी का सम्भलने के लिये !
और सब लोग यहीं आके फिसलते क्यूँ हैं !!

राहत ईन्दोरी.

९-४-१०

इतना टुटा हु के छुने से बिखर जाउगा !
अब अगर और दुआ दोगे तो मर जाउगा!!

ज़िंदगी मैं भी मुसाफ़िर हूँ तेरी कश्ती का !
तू जहाँ मुझसे कहेगी, मैं उतर जाऊँगा !!

- मुईन नज़र

८-४-१०

सेहरा मे रह के कैस ज्यादा मजे मे है! (सेहरा=वाळवंट, कैस = मजनु चे खरे नाव )
दुनिया समझ रहीहै के लैला मजे मे है !!

परदेस ने हमे बरबाद कर दिया मगर!
मा सब से केह रहीहै के बेटा मजे मे है!!

munawwar rana.

७-४-१०

हम अब मकान मे ताला लगाने वाले है!
सुना है आज घर मेहमान आने वाले है!!

हमे हकीर ना जानो हम अपने नेजे से ! ( हकीर =कनिश्ठ , नेजा=भाला )
गजल की आंख मे काजल लगाने वाले है!!

राहत ईन्दोरी.

६-४-१०
हर हाल मे बख्शेगा उजाला अपना ! ( बख्शेगा = देनार ) ( हर हाल मे =काही ही करुन )
चांद रिश्ते मे नही लगता है मामा अपना!!

मैने रोते हुवे पोछे थे किसि दिन आंसु!
मुद्दतो मा ने नही धोया दुपट्टा अपना !! ( मुद्दतो= लांब मुदती पर्यंत )

munawwar rana.

५-४-१०

गुलाब ख्वाब दवा जहर जाम क्या क्या है ?
मै आ गया हु बता इन्तेजाम क्या क्या है ! ( इन्तेजाम=प्रबंध )

फकिर शाह कलंदर इमाम क्या क्या है ! ( फकिर=भिक्षुक, शाह=राजा, कलंदर=भट्के सुफी, इमाम=धर्मगुरु )
तुझे पता नही तेरा गुलाम क्या क्या है !!

राहत ईन्दोरी.

४-४-१०

अना[1]की मोहनी[2]सूरत बिगाड़ देती है
बड़े-बड़ों को ज़रूरत बिगाड़ देती है

किसी भी शहर के क़ातिल बुरे नहीं होते
दुलार कर के हुक़ूमत[3]बिगाड़ देती है

इसीलिए तो मैं शोहरत[4]से बच के चलता हूँ
शरीफ़ लोगों को औरत बिगाड़ देती है

munawwar rana.

शब्दार्थ:

1. ↑ आत्म-सम्मान
2. ↑ मोहक, मोहिनी
3. ↑ शासन
4. ↑ प्रसिद्धि

३-४-१०

जहालतो के अन्धेरे मिटा के लौट आया ! (जहालत्= अद्यान )
मै आज सारी किताबे जला के लौट आया !!

सुना है सोना निकल रहा है वहा !
मै जिस जमिन पर ठोकर लगा के लौट आया!

राहत ईन्दोरी.

२-४-१०
हमारी दोस्ती से दुश्म नी शर्माइ रहती है!
हम अकबर है हमारे दिल मे जोधाबाइ रहती है!!

किसी का पुछना कब तलक राह देखोगे ?
हमारा फैसला जब तलक बीनाइ रहती है ! ( बीनाइ= द्रुश्टी , power of eyes)

munawwar rana.

१-४-१०

अब के हम बिछडे तो शायद कभी ख्वाबो मे मिले!
जिस तरह सुखे हुवे फूल किताबो मे मिले !!

न तु खुदा है ना मेरा इश्क फरिश्तो जैसा !
दोनो इन्सान है तो क्यु इतने हिजाबो मे मिले!! ( हिजाब = परदा )

::अहमद फराज

३१-३-१०

सब ने मिलाये हाथ यहा तिरगी के साथ! ( तिरगी = काळोख )
कितना बडा मजाक हुवा रोशनी के साथ!!

शर्ते लगायी जाती नही दोस्ति के साथ !
किजीये मुझे कबुल मेरी हर कमी के साथ!!

dr.wasim barelawi

३०-३-१०

लोग टुट जाते है एक घर बनाने मे!
तुम रहम नही खाते बस्तिया जलाने मे!!

( लोग उन्मळुन पडतात एक घर बनवन्यातच , तुम्हाला मुळीच करुणा येत नाही संपुर्ण वस्ती जाळतांना )

हर धडकते पथ्थर को लोग दिल समझते है !
उमरे बीत जाती है दिल को दिल बनाने मे !!

( प्रत्येक धड्धड्नार्‍या दगडाला लोक ह्रुद्य समझून घेतात , किती तरी हयाती सरतात ह्रुद्याला ह्रुद्य बनवन्यासठी )

dr.Bashir badar

२९-३-१०

जवान सितारो को मोहब्ब्ते सिखा रहा था मै !
कल उस के हाथ का कन्गन घुमा रहा था मै !!

( तरुण चांदण्यांना मी प्रेम करायचं शिकवत होतो , काल तिच्या हातातले कान्ग्न मी फिरवत होतो)

उसी दिये ने जलाया मेरी हथेली को !
जिस कि लौ को हवा से बचा रहा था मै!!

( त्याच दिव्याने माझ्या तळ्हाथाला जाळ्ले , ज्याच्या वातीला मी वार्‍या पासुन वाचवत होतो.)

विनंती - क्रुपया मला साहेब म्हणु नका , विशम( odd ) वाटते , अश्फाक भाउ/ भाइ म्हणु शकता.

२८-३-१०
इबादतो कि तरह मै ये काम करता हु !
जब भि मिलता हु पहले सलाम करता हु !!

( आरधने सारखे मी हे काम करतो , कुनालाही भेटलो कि पहिले अभिवादन करतो )

मुखालिफत से संवरती है शख्सियत मेरी !
मै दुश्मनो का बडा एहतेराम करता हु !!

( विरोधाने माझ्या व्यक्तिमत्वाला निखार येतो , मी माझ्या शत्रुंचा फारच आदर करतो )

dr.Bashir badar

२७-३-१०
सर्व मिसलपाव च्या सन्माननिय सभासदाना नमस्कार ,

आपले लेखन वाचुन असे लक्शात आले कि गझल आनि शेर-ओ-शायरि बद्दल फार लोकाना जानुन घ्यायाचि इच्छा अस्ते , पन जास्त करुन गझल उर्दु भाशेत असतात आनि ते समजाय्तला कठिन असतात.तरि मि माझ्या परिने शक्य तित्के सोप्या भाशेत रोज काहि तरि नवीन ( भाशान्तर) द्यायचा प्रयत्न करेल . आपल्या प्रतिक्रियानच्या प्रतिक्शेत.........

साहिल पे समन्दर के खजाने नहि आते
होटो पे मोहोब्बत के फसाने नहि आते

(किनार्यावर खोल समुद्रातिल खजाना सहजा-सहजी येत नाहि ,तसेच जसे माझ्या ह्रुद्यात कितितरि प्रेमगाथा लपलेल्या आहेत पन त्या ओठा पर्यन्त पोहोचु शकत नाहि.)

सोते मे चमक उठति है पलके हमारी
आन्खो को अब ख्वाब छुपाने नही आते.

( रात्री झोपलेले असाताना मझ्या पापन्या चमकु लागतात कारन मी पाहिलेले तेजस्वी स्वप्न माझ्या नयनाना लपवता येत नाही )

dr.bashir badar

करुणगझल

प्रतिक्रिया

II विकास II's picture

28 Mar 2010 - 12:18 pm | II विकास II

आवडले, तुम्ही सगळे वेगवेगळे भाषांतर धागे टाकण्यापेक्षा एकच धागा टाकाल काय?
मला वाटते, वाचायला सोपे पडेल. असो ही विनंती आहे.
--

प्रतिसादात आणि स्वाक्षरीत मराठी संकेतस्थळांची जाहीरात करुन मिळेल. विद्रोही संकेतस्थळांना खास सुट. योग्य बोली सह संपर्क करावा.

प्रा.डॉ.दिलीप बिरुटे's picture

28 Mar 2010 - 12:28 pm | प्रा.डॉ.दिलीप बिरुटे

मुखालिफत से संवरती है शख्सियत मेरी !
मै दुश्मनो का बडा एहतेराम करता हु !!
( विरोधाने माझ्या व्यक्तिमत्वाला निखार येतो , मी माझ्या शत्रुंचा फारच आदर करतो )

क्या बात है ! अजून येऊ द्या.

-दिलीप बिरुटे

शुचि's picture

28 Mar 2010 - 9:07 pm | शुचि

मस्त
||विकास|| & बिरुटे यांच्या दोघांच्या वक्तव्याला +१
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
हम नहीं वह जो करें ख़ून का दावा तुझपर
बल्कि पूछेगा ख़ुदा भी तो मुकर जायेंगे

अश्फाक's picture

29 Mar 2010 - 8:05 pm | अश्फाक

विनंती - क्रुपया मला साहेब म्हणु नका , विशम( odd ) वाटते , अश्फाक भाउ/ भाइ म्हणु शकता.

अश्फाक's picture

30 Mar 2010 - 7:48 pm | अश्फाक

३०-३-१०

लोग टुट जाते है एक घर बनाने मे!
तुम रहम नही खाते बस्तिया जलाने मे!!

( लोग उन्मळुन पडतात एक घर बनवन्यातच , तुम्हाला मुळीच करुणा येत नाही संपुर्ण वस्ती जाळतांना )

हर धडकते पथ्थर को लोग दिल समझते है !
उमरे बीत जाती है दिल को दिल बनाने मे !!

( प्रत्येक धड्धड्नार्‍या दगडाला लोक ह्रुद्य समझून घेतात , किती तरी हयाती सरतात ह्रुद्याला ह्रुद्य बनवन्यासठी )

dr.Bashir badar

नेत्रेश's picture

31 Mar 2010 - 6:19 am | नेत्रेश

छान शायरी आहे पण..

(कठीण शब्दांचे अर्थ दीले तरी चालतील पण मराठी भाशांतर नको ... सगळी मजा त्या भयंकर भाशांतराने घालऊन टाकली आहे)

अश्फाक's picture

31 Mar 2010 - 10:37 am | अश्फाक

३१-३-१०

सब ने मिलाये हाथ यहा तिरगी के साथ! ( तिरगी = काळोख )
कितना बडा मजाक हुवा रोशनी के साथ!!

शर्ते लगायी जाती नही दोस्ति के साथ !
किजीये मुझे कबुल मेरी हर कमी के साथ!!

dr.wasim barelawi

अश्फाकभाई,
हे सर्व शेर आपण लिहिलेले आहेत कां?
तसं असेल तर फारच छान आहेत. जे शेर मी स्वतः सुरू केलेल्या धाग्यावर चढवतो ते दुसर्‍यांचेच असतात. (आपुनको कविता-बिविता जमती नहीं!) पण चांगल्या कविता, शेरोशायरी वाचायला आवडते.
सुधीर काळे, जकार्ता
------------------------
हा दुवा उघडा: http://72.78.249.107/esakal/20100309/5306183452989196847.htm

मनिष's picture

31 Mar 2010 - 1:10 pm | मनिष

अश्फाक यांनी खाली शायर दिला आहेच.

सुधीर काळे's picture

31 Mar 2010 - 5:01 pm | सुधीर काळे

खरंच. मी पाहिलं नव्हतं!
सुधीर काळे, जकार्ता
------------------------
हा दुवा उघडा: http://72.78.249.107/esakal/20100309/5306183452989196847.htm

सुधीर काळे's picture

31 Mar 2010 - 5:00 pm | सुधीर काळे

कॅन्सल

शुचि's picture

31 Mar 2010 - 6:29 pm | शुचि

३१ मार्च चे शेर काही खासच!!!!
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
हम नहीं वह जो करें ख़ून का दावा तुझपर
बल्कि पूछेगा ख़ुदा भी तो मुकर जायेंगे

अश्फाक's picture

1 Apr 2010 - 10:48 am | अश्फाक

१-४-१०

अब के हम बिछडे तो शायद कभी ख्वाबो मे मिले!
जिस तरह सुखे हुवे फूल किताबो मे मिले !!

न तु खुदा है ना मेरा इश्क फरिश्तो जैसा !
दोनो इन्सान है तो क्यु इतने हिजाबो मे मिले!! ( हिजाब = परदा )

::अहमद फराज

अश्फाक's picture

1 Apr 2010 - 6:36 pm | अश्फाक

मान्य

अश्फाक's picture

2 Apr 2010 - 10:25 am | अश्फाक

२-४-१०
हमारी दोस्ती से दुश्म नी शर्माइ रहती है!
हम अकबर है हमारे दिल मे जोधाबाइ रहती है!!

किसी का पुछना कब तलक राह देखोगे ?
हमारा फैसला जब तलक बीनाइ रहती है ! ( बीनाइ= द्रुश्टी , power of eyes)

munawwar rana.

अश्फाक's picture

3 Apr 2010 - 7:07 am | अश्फाक

३-४-१०

जहालतो के सारे अन्धेरे मिटा के लौट आया ! (जहालत्= अद्यान )
मै आज सारी किताबे जला के लौट आया !!

सुना है सोना निकल रहा है वहा !
मै जिस जमिन पर ठोकर लगा के लौट आया!

राहत ईन्दोरी.

विष्णुसूत's picture

3 Apr 2010 - 8:29 pm | विष्णुसूत

वाह वाह ... क्या बात है !
( जहालत = अज्ञान )

प्रा.डॉ.दिलीप बिरुटे's picture

3 Apr 2010 - 9:37 pm | प्रा.डॉ.दिलीप बिरुटे

सुना है सोना निकल रहा है वहा !
मै जिस जमिन पर ठोकर लगा के लौट आया !

क्या बात है !

-दिलीप बिरुटे

अश्फाक's picture

6 Apr 2010 - 7:23 pm | अश्फाक

धन्यवाद

अविनाशकुलकर्णी's picture

3 Apr 2010 - 3:30 pm | अविनाशकुलकर्णी

अश्फाक भाउ/ भाइ म्हणु शकता.
अश्फाक भाउ ठिक आहे...भाइ नको...
शेर मस्त आहेत

अश्फाक's picture

3 Apr 2010 - 7:35 pm | अश्फाक

इनायत, नवाजिश

अश्फाक's picture

4 Apr 2010 - 8:14 pm | अश्फाक

४-४-१०

अना[1]की मोहनी[2]सूरत बिगाड़ देती है
बड़े-बड़ों को ज़रूरत बिगाड़ देती है

किसी भी शहर के क़ातिल बुरे नहीं होते
दुलार कर के हुक़ूमत[3]बिगाड़ देती है

इसीलिए तो मैं शोहरत[4]से बच के चलता हूँ
शरीफ़ लोगों को औरत बिगाड़ देती है

शब्दार्थ:

1. ↑ आत्म-सम्मान
2. ↑ मोहक, मोहिनी
3. ↑ शासन
4. ↑ प्रसिद्धि

अश्फाक's picture

5 Apr 2010 - 9:15 pm | अश्फाक

५-४-१०

गुलाब ख्वाब दवा जहर जाम क्या क्या है ?
मै आ गया हु बता इन्तेजाम क्या क्या है ! ( इन्तेजाम=प्रबंध )

फकिर शाह कलंदर इमाम क्या क्या है ! ( फकिर=भिक्षुक, शाह=राजा, कलंदर=भट्के सुफी, इमाम=धर्मगुरु )
तुझे पता नही तेरा गुलाम क्या क्या है !!

राहत ईन्दोरी.

अश्फाक's picture

6 Apr 2010 - 11:17 am | अश्फाक

आपल्या सुचना आणि प्रतिक्रिया आमच्यासाठी अमुल्य आहेत, प्रतिक्षेत .........

६-४-१०
हर हाल मे बख्शेगा उजाला अपना ! ( बख्शेगा = देनार ) ( हर हाल मे =काही ही करुन )
चांद रिश्ते मे नही लगता है मामा अपना!!

मैने रोते हुवे पोछे थे किसि दिन आंसु!
मुद्दतो मा ने नही धोया दुपट्टा अपना !! ( मुद्दतो= लांब मुदती पर्यंत )

munawwar rana.

शुचि's picture

6 Apr 2010 - 9:17 pm | शुचि

अश्फाक भाऊ, दर वेळेला प्रतिक्रिया देताच येत नाही मला तरी
पण तुमचे हे शेर रोज मी वाट बघते वाचण्यासाठी.
मिपावरचा प्रत्येक लेख मला समृद्ध करतो कणाकणानी.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सजनि कौन तम में परिचित सा, सुधि सा, छाया सा, आता?
सूने में सस्मित चितवन से जीवन-दीप जला जाता!

अश्फाक's picture

7 Apr 2010 - 8:34 pm | अश्फाक

आपल्या सुचना आणि प्रतिक्रिया आमच्यासाठी अमुल्य आहेत, प्रतिक्षेत .........

७-४-१०

हम अब मकान मे ताला लगाने वाले है!
सुना है आज घर मेहमान आने वाले है!!

हमे हकीर ना जानो हम अपने नेजे से !
गजल की आंख मे काजल लगाने वाले है!!

राहत ईन्दोरी.

शुचि's picture

7 Apr 2010 - 9:16 pm | शुचि

छान आहेत शेर ७ एप्रिल चे. मला २रा आवडला विशेषकरून.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
I have always known that at last I would take this road, but yesterday I did not know that it would be today. - Narihara

अश्फाक's picture

8 Apr 2010 - 10:58 am | अश्फाक

आपल्या सुचना आणि प्रतिक्रिया आमच्यासाठी अमुल्य आहेत, प्रतिक्षेत .........

८-४-१०

सेहरा मे रह के कैस ज्यादा मजे मे है! (सेहरा=वाळवंट, कैस = मजनु चे खरे नाव )
दुनिया समझ रहीहै के लैला मजे मे है !!

परदेस ने हमे बरबाद कर दिया मगर!
मा सब से केह रहीहै के बेटा मजे मे है!!

munawwar rana.

मदनबाण's picture

9 Apr 2010 - 9:50 am | मदनबाण

अश्फाक भाउ हा धागा लयं आवडला...और भी आने दो.

मदनबाण.....

There is no need for temples, no need for complicated philosophies. My brain and my heart are my temples; my philosophy is kindness.
Dalai Lama

अश्फाक's picture

9 Apr 2010 - 11:11 am | अश्फाक

९-४-१०

इतना टुटा हु के छुने से बिखर जाउगा !
अब अगर और दुआ दोगे तो मर जाउगा!!

ज़िंदगी मैं भी मुसाफ़िर हूँ तेरी कश्ती का !
तू जहाँ मुझसे कहेगी, मैं उतर जाऊँगा !!

- मुईन नज़र

प्रा.डॉ.दिलीप बिरुटे's picture

11 Apr 2010 - 7:40 pm | प्रा.डॉ.दिलीप बिरुटे

और भी आने दो..!

-दिलीप बिरुटे

अश्फाक's picture

10 Apr 2010 - 12:01 pm | अश्फाक

१०-४-१०

लोग हर मोड़ पे रुक रुक के सम्भलते क्यूँ हैं !
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूँ हैं !!

मैं न जुगनू हूँ दिया हूँ न कोई तारा हूँ !
रौशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यूँ हैं !!

नीन्द से मेरा त'अल्लुक़ ही नहीं बरसों से ! ( त'अल्लुक़ = संबंध )
ख़्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यूँ हैं !!

मोड़ होता है जवानी का सम्भलने के लिये !
और सब लोग यहीं आके फिसलते क्यूँ हैं !!

राहत ईन्दोरी.

अश्फाक's picture

11 Apr 2010 - 11:58 am | अश्फाक

११-४-१० रविवार

पेशानियों पे लिखे मुक़द्दर नहीं मिले! ( पेशानियों = कपाळांवर , मुक़द्दर = नशिब )
दस्तार कहाँ मिलेंगे जहाँ सर नहीं मिले!! ( दस्तार = फेटा )

आवारगी को डूबते सूरज से रब्त है! ( रब्त= लगाव्/जवळीक )
मग़्रिब के बाद हम भी तो घर पर नहीं मिले!! ( मग्रिब = सुर्यास्ताची वेळ )

कल आईनों का जश्न हुआ था तमाम रात!
अन्धे तमाशबीनों को पत्थर नहीं मिले!! ( तमाशबीनों = प्रेक्षक )

मैं चाहता था ख़ुद से मुलाक़ात हो मगर!
आईने मेरे क़द के बराबर नहीं मिले!! ( कद्=उंची )

पर्देस जा रहे हो तो सब देखते चलो!
मुम्किन है वापस आओ तो ये घर नहीं मिले!!

राहत ईन्दोरी.

शुचि's picture

12 Apr 2010 - 5:11 am | शुचि

कल आईनों का जश्न हुआ था तमाम रात!
अन्धे तमाशबीनों को पत्थर नहीं मिले!! ( तमाशबीनों = प्रेक्षक )

मैं चाहता था ख़ुद से मुलाक़ात हो मगर!
आईने मेरे क़द के बराबर नहीं मिले!! ( कद्=उंची )

मार डाला!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
I have always known that at last I would take this road, but yesterday I did not know that it would be today. - Narihara

मनिष's picture

13 Apr 2010 - 11:12 am | मनिष

पर्देस जा रहे हो तो सब देखते चलो!
मुम्किन है वापस आओ तो ये घर नहीं मिले!!

राहत ईन्दोरी.

अशक्य आहे हा...
You can't go home again शी जवळीक दाखवणारा!

एक से एक बढिया शेर है.

वेताळ

अश्फाक's picture

11 Apr 2010 - 7:30 pm | अश्फाक

धन्यवाद

मदनबाण's picture

11 Apr 2010 - 7:34 pm | मदनबाण

अश्फाक भाउ...वाचतोय्.
बहोत बढीया. :)

मदनबाण.....

There is no need for temples, no need for complicated philosophies. My brain and my heart are my temples; my philosophy is kindness.
Dalai Lama

जयवी's picture

12 Apr 2010 - 1:11 am | जयवी

क्या बात है !!!!!!!!

अश्फाक's picture

12 Apr 2010 - 10:45 am | अश्फाक

१२-४-१०

जब कभि बोलना वक्त पर बोलना !
मुद्दतो सोचना , मुख्तसर बोलना !! ( मुद्दतो= लांब मुदती पर्यंत ,मुख्तसर =थोडे से)

मेरि खानाबदोशी से पुछे कोइ ! ( खानाबदोशी = अस्थायी , भटके जीवन बंजारो की तरह )
कितना मुश्किल है रस्ते को घर बोलना!!

तहीर फराझ

आवडाबाई's picture

13 Apr 2010 - 10:52 am | आवडाबाई

मजा आ रहा है !!
लगे रहो
प्रत्येक वेळी प्रतिक्रिया नाही दिली तरी वाचत आहे
बरेचसे शेर प्रथमच वाचल्यामुळे जास्तच मजा येतेय

अश्फाक's picture

13 Apr 2010 - 8:09 pm | अश्फाक

१३-४-१०

ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे! ( गिला = तक्रार , शिकायत )
तू बहुत देर से मिला है मुझे!!

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल! ( तु प्रेमाने मला धोका तर दे ,
हार जाने का हौसला है मुझे!! ( माझ्यात पराभव पत्करन्याची हिम्मत आहे )

::अहमद फराज

शुचि's picture

13 Apr 2010 - 9:14 pm | शुचि

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल! ( तु प्रेमाने मला धोका तर दे ,
हार जाने का हौसला है मुझे!! ( माझ्यात पराभव पत्करन्याची हिम्मत आहे )

मस्त!!!
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
I have always known that at last I would take this road, but yesterday I did not know that it would be today. - Narihara

मदनबाण's picture

13 Apr 2010 - 8:37 pm | मदनबाण

अश्फ़ाक भाउ...मस्त एकसे एक शेर देत आहेस...सुभानल्ला !!! :)
पण आज हा वर टाकलेला शेर तुम्ही आधीच दिला आहेत...तूमचा या धाग्याचा पहिलाच शेर पहा.

मदनबाण.....

There is no need for temples, no need for complicated philosophies. My brain and my heart are my temples; my philosophy is kindness.
Dalai Lama

अश्फाक's picture

13 Apr 2010 - 9:15 pm | अश्फाक

मदनबाण...,
काही तरी गैर समज झाला आहे आपला

मी रोज शेर वरुन खाली असे तारर्खेसह संपादीत करतो .
अजुन तरी कोनताही शेर रिपिट झाला नाही

मदनबाण's picture

14 Apr 2010 - 8:17 pm | मदनबाण

माझी चूक झाली.

मदनबाण.....

There is no need for temples, no need for complicated philosophies. My brain and my heart are my temples; my philosophy is kindness.
Dalai Lama

अश्फाक's picture

14 Apr 2010 - 12:18 pm | अश्फाक

१४-४-१०

मेरे खुलुस की गेहराई से नही मिलते ! ( खुलुस = सह्र्युदता )
ये झुटे लोग है सच्चाइ से नही मिलते !!

मुझे सबक दे रहे है वो मोहब्बत का !
जो ईद अप्ने सगे भाई से नही मिलते !!

राहत ईन्दोरी.

वाहीदा's picture

14 Apr 2010 - 12:53 pm | वाहीदा

अश्फाक भाईजान,

तसलीम !

अगर आपको हमारी दखलअंदाजी बेअदबी नही लगती है तो अच्छी बात है, वरना माफी चाहते हुवे, हम आपको correct करना चाहेंगें..

खुलुस के माईने मराठी में सह्र्युदता नहीं होता
खुलुस माने अंग्रेजी में Clearness, purity होती है, जिसके मराठी में मायने (meaning) निर्मळता जो दिलकी भी हो सकती है

मेरे खुलुस की गहराई से नहीं मिलते
मायने,
मेरी दिल की साफ सुथरी सच्चाई के गहराई से नहीं मिलते
खुलुस - निर्मल - साफ सुथरा Clear , purity

बेशक , आपके सभी शेर लाजवाब है! :-)
~ वाहीदा

अश्फाक's picture

14 Apr 2010 - 7:49 pm | अश्फाक

जझाक-अल्लाह ,

आपन दिलेले अर्थ अगदी बरोबर आहे जर , आपण खुलुस ला नाम ( noun ) म्हणुन वापरले तर ,
पन येथे विशेशन(adjective) म्हणुन वापरले आहे. ज्याचा अर्थ Sincerity,frankness असा ही होतो . असो प्रतिक्रीये बद्दल धन्यवाद.

Sincerity is the virtue of one who speaks truly about his or her own feelings, thoughts, desires.

वाहीदा's picture

15 Apr 2010 - 2:12 pm | वाहीदा

जझाक-अल्लाह
इतनी बडीं दुवा दे दी और क्या चाहीये ...
तहे दिलसे शुक्रिया !!

अवांतर : मी तुम्हाला खुलुस या शब्दा बध्द्ल व्यनी तून बोलेन (सद्या कामाची गडबड अन ओन्साईट टेकनिक्ल डायरेक्ट ची लुड-बुड मागे लागली आहे :-( )

~ वाहीदा

अश्फाक's picture

15 Apr 2010 - 12:39 pm | अश्फाक

१५-४-१०

खुद को कितना छोटा करना पड्ता है!
बेटे से समझौता करना पडता है!!

जब सारे के सारे ही बेपर्दा हो!
ऐसे मे खुद परदा करना पडता है!!

नवाज देवबंदी.

वात्रट's picture

15 Apr 2010 - 8:35 pm | वात्रट

लै भारी....

<<अश्फाक भाऊ, दर वेळेला प्रतिक्रिया देताच येत नाही मला तरी
पण तुमचे हे शेर रोज मी वाट बघतो वाचण्यासाठी.>>

असेच म्हणतो...

अश्फाक's picture

16 Apr 2010 - 11:57 am | अश्फाक

आपल्या सुचना आणि प्रतिक्रिया आमच्यासाठी अमुल्य आहेत, प्रतिक्षेत .........

१६-४-१० NRI special

मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं ! ( मुहाजिर = निर्वासीत )
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं !!

कहानी का ये हिस्सा आजतक सब से छुपाया है !
कि हम मिट्टी की ख़ातिर अपना सोना छोड़ आए हैं!!

नई दुनिया बसा लेने की इक कमज़ोर चाहत में !
पुराने घर की दहलीज़ों को सूना छोड़ आए हैं !!

अक़ीदत से कलाई पर जो इक बच्ची ने बाँधी थी ! ( अक़ीदत = विश्वास )
वो राखी छोड़ आए हैं वो रिश्ता छोड़ आए हैं !!

किसी की आरज़ू ने पाँवों में ज़ंजीर डाली थी ! ( आरज़ू = इच्छा )
किसी की ऊन की तीली में फंदा छोड़ आए हैं!! ( ऊन की तीली = लोकर विनायची काडी / फंदा= टोक, छेडा )

पकाकर रोटियाँ रखती थी माँ जिसमें सलीक़े से! ( सलीक़े से= पद्ध्तशीर )
निकलते वक़्त वो रोटी की डलिया छोड़ आए हैं!! (डलिया = टोपली )

जो इक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती है! ( उन्नाव, मोहान = यु.पी. मधील गाव )
वहीं हसरत के ख़्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं!! ( हसरत = इच्छा )

यक़ीं आता नहीं, लगता है कच्ची नींद में शायद!
हम अपना घर गली अपना मोहल्ला छोड़ आए हैं!!

हमारे लौट आने की दुआएँ करता रहता है !
हम अपनी छत पे जो चिड़ियों का जत्था छोड़ आए हैं!!

हमें हिजरत की इस अन्धी गुफ़ा में याद आता है! (हिजरत= स्थलांतर )
अजन्ता छोड़ आए हैं एलोरा छोड़ आए हैं!!

सभी त्योहार मिलजुल कर मनाते थे वहाँ जब थे!
दिवाली छोड़ आए हैं दशहरा छोड़ आए हैं!!

हमें सूरज की किरनें इस लिए तक़लीफ़ देती हैं!
अवध की शाम काशी का सवेरा छोड़ आए हैं!!

गले मिलती हुई नदियाँ गले मिलते हुए मज़हब! (मज़हब = धर्म)
इलाहाबाद में कैसा नज़ारा छोड़ आए हैं!!

हम अपने साथ तस्वीरें तो ले आए हैं शादी की !
किसी शायर ने लिक्खा था जो सेहरा छोड़ आए हैं!! (सेहरा = लग्नात गायचे स्तुतीपर गीत)

मुनव्वर राणा .

मुगल सलतनत के आखरी शहंशाह बहादुर शाह ज़फ़र के लिखे हुए कुछ आखरी कलाम (जब उन्हे अंग्रेजी पुलीस पकडकर ले गयी ..)

लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में
किसकी बनी है आलमे-ना-पायदार में

बुलबुल को बाग़बां से न सय्याद से गिला
क़िस्मत में क़ैद थी लिखी फ़स्ले-बहार में

कहदो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहां है दिले दाग़दार में

एक शाख़े-गुल पे बैठ के बुलबुल है शादमां
कांटे बिछा दिए हैं दिले-लालज़ार में

उम्रे-दराज़ मांग के लाए थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में

दिन ज़िंदगी के ख़त्म हुए शाम हो गई
फैला के पांव सोएंगे कुंजे मज़ार में

कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीं भी मिल न सकी कूए-यार में
--बहादुर शाह ज़फ़र

बतौर शमा के रोते इस अंजुमन से चले
न बाग़बां ने इजाज़त दी सैर करने की
खुशी से आए थे रोते हुए चमन से चले

न मालो हकुमत न धन जायेगा.
तेरे साथ बस एक कफन जायेगा.
बचा भी न कोइ कि नोहा करे
पारायों के कांधे बदन जायेगा.

जिलावतनी ओढे तु सोता रहा,
यादों में लिपटा गगन जायेगा

मुल्क कि मिट्टी की चादर कहां,?
जफर तु तो अब बे वतन जायेगा
--बहादुर शाह ज़फ़र
~ वाहीदा

मनिष's picture

16 Apr 2010 - 12:41 pm | मनिष

मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं ! ( मुहाजिर = निर्वासीत )
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं !!

कहानी का ये हिस्सा आजतक सब से छुपाया है !
कि हम मिट्टी की ख़ातिर अपना सोना छोड़ आए हैं!!

नई दुनिया बसा लेने की इक कमज़ोर चाहत में !
पुराने घर की दहलीज़ों को सूना छोड़ आए हैं !!

अक़ीदत से कलाई पर जो इक बच्ची ने बाँधी थी ! ( अक़ीदत = विश्वास )
वो राखी छोड़ आए हैं वो रिश्ता छोड़ आए हैं !!

किसी की आरज़ू ने पाँवों में ज़ंजीर डाली थी ! ( आरज़ू = इच्छा )
किसी की ऊन की तीली में फंदा छोड़ आए हैं!! ( ऊन की तीली = लोकर विनायची काडी / फंदा= टोक, छेडा )

पकाकर रोटियाँ रखती थी माँ जिसमें सलीक़े से! ( सलीक़े से= पद्ध्तशीर )
निकलते वक़्त वो रोटी की डलिया छोड़ आए हैं!! (डलिया = टोपली )

जो इक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती है! ( उन्नाव, मोहान = यु.पी. मधील गाव )
वहीं हसरत के ख़्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं!! ( हसरत = इच्छा )

यक़ीं आता नहीं, लगता है कच्ची नींद में शायद!
हम अपना घर गली अपना मोहल्ला छोड़ आए हैं!!

हमारे लौट आने की दुआएँ करता रहता है !
हम अपनी छत पे जो चिड़ियों का जत्था छोड़ आए हैं!!

हमें हिजरत की इस अन्धी गुफ़ा में याद आता है! (हिजरत= स्थलांतर )
अजन्ता छोड़ आए हैं एलोरा छोड़ आए हैं!!

सभी त्योहार मिलजुल कर मनाते थे वहाँ जब थे!
दिवाली छोड़ आए हैं दशहरा छोड़ आए हैं!!

हमें सूरज की किरनें इस लिए तक़लीफ़ देती हैं!
अवध की शाम काशी का सवेरा छोड़ आए हैं!!

गले मिलती हुई नदियाँ गले मिलते हुए मज़हब! (मज़हब = धर्म)
इलाहाबाद में कैसा नज़ारा छोड़ आए हैं!!

हम अपने साथ तस्वीरें तो ले आए हैं शादी की !
किसी शायर ने लिक्खा था जो सेहरा छोड़ आए हैं!! (सेहरा = लग्नात गायचे स्तुतीपर गीत)

मुनव्वर राणा .

अंगावर काटा आहे आणि डोळे पाणावलेत. गुलजारच्या फाळणीच्या गोष्टी आठवल्या...सध्या तरी निशब्द! ही कविता/नज्म वापरेन मी कुठेतरी..जमेल तेव्हा! अतिशय संवेदनशील कविता.

मला "ओ देस से आने वाले बता" आठवले...मी माझ्या ब्लॉगवर लिहीले होते त्याबद्द्ल -
http://ramblings2reflections.wordpress.com/2007/09/07/o-des-se-aane-wale...

अश्फाक's picture

16 Apr 2010 - 9:33 pm | अश्फाक

नवाजिश , करम , शुक्रिया , इनायत .

काही शब्दांचे अर्थ कळत नाहीयेत..

अश्फाक's picture

17 Apr 2010 - 7:32 pm | अश्फाक

१७-४-१०

आते-आते मेरा नाम सा रह गया !
उस के होंठों पे कुछ काँपता रह गया!!

वो मेरे सामने ही गया और मैं !
रास्ते की तरफ देखता रह गया !!

झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गये !
और मैं था कि सच बोलता रह गया!!

आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे!
ये दिया कैसे जलता रह गया !!

वसीम बरेलवी

मदनबाण's picture

17 Apr 2010 - 7:38 pm | मदनबाण

वाचनखुण म्हणुन हा धागा साठवला आहे... :)

मदनबाण.....

There is no need for temples, no need for complicated philosophies. My brain and my heart are my temples; my philosophy is kindness.
Dalai Lama

अश्फाक's picture

18 Apr 2010 - 7:42 pm | अश्फाक

१८-४-१०

अब मै समझा तेरे रुखसार पे तिल का मतलब ! ( रुखसार = गाल )
दौलत-ए-हुस्न पे दरबान बिठा रखा है!! ( दरबान= पहारेकरी )

गर सियाह बख्त ही होना था नसीबो मे मेरे ! (गर = अगर्/जर , सियाह =काळा, बख्त= नशीब)
जुल्फ होता तेरे रुखसार पे या तिल होता !! ( जुल्फ= केसांची बट , रुखसार = गाल )

गुमनाम.

अश्फाक's picture

19 Apr 2010 - 10:46 am | अश्फाक

१९-४-१०

कब लोगों ने अल्फ़ाज़ के पत्थर नहीं फेंके ! ( अल्फ़ाज़= शब्द )
वो ख़त भी मगर मैंने जला कर नहीं फेंके !!

ठहरे हुए पानी ने इशारा तो किया था !
कुछ सोच के खुद मैंने ही पत्थर नहीं फेंके!!

क्या बात है उसने मेरी तस्वीर के टुकड़े !
घर में ही छुपा रक्खे हैं बाहर नहीं फेंके !!

दरवाज़ों के शीशे न बदलवाइए नज़मी !
लोगों ने अभी हाथ से पत्थर नहीं फेंके !!

अख़्तर नज़मी .

अश्फाक's picture

20 Apr 2010 - 7:58 pm | अश्फाक

२०-४-१०

ना सुपारी नजर आयी ना सरोता निकला ! ( सरोता = सुपारी कापायचे यंत्र )
मा के बटवे से दुवा निकली वजीफा निकला!! ( बटवा = खिसा,पाकिट / वजीफा = जप )

एक निवाले के लिये मैने जिसे मार दिया ! ( निवाला = घास )
वो परिन्दा भि कई रोज का भुका निकला !!

मुनव्वर राणा .

धमाल मुलगा's picture

20 Apr 2010 - 8:10 pm | धमाल मुलगा

मस्त आहेत शेर.

मला जास्त आवडतात ते फराझ आणि राशिद ह्यांचे शेर :)
काय कातील दर्द असतं..

अश्फाक's picture

21 Apr 2010 - 10:33 am | अश्फाक

२१-४-१०

तिफली मे सुना करते थे नानी से कहानी ! ( तिफली =बचपन )
बचपन है अगर शोख तो शोला है जवानी!! ( शोख = अवखळ )

जुडे मे सिमट आती है सावन की घटाये ! ( जुडा = केसांचा अंबाडा , सिमटना= एकत्र येणे )
खुल जाये अचानक तो बरस जाता है पानी!!

सागर खय्यामी .

मनिष's picture

21 Apr 2010 - 11:29 am | मनिष

एक निवाले के लिये मैने जिसे मार दिया ! ( निवाला = घास )
वो परिन्दा भि कई रोज का भुका निकला !!

मुनव्वर राणा

अश्फाक भाई,

तुमच्या ह्या लिखाणाने मी मुनव्वर राणांचा फॅन झालोय...त्यांच्याबद्दल अजून लिहाल का?

अश्फाक's picture

22 Apr 2010 - 7:02 pm | अश्फाक

२२-४-१०

इसी गली में वो भूखा किसान रहता है!
ये वो ज़मीन है जहाँ आसमान रहता है!!

मैं डर रहा हूँ हवा से ये पेड़ गिर न पड़े!
कि इस पे चिडियों का इक ख़ानदान रहता है!!

सड़क पे घूमते पागल की तरह दिल है मेरा!
हमेशा चोट का ताज़ा निशान रहता है !!

तुम्हारे ख़्वाबों से आँखें महकती रहती हैं!
तुम्हारी याद से दिल जाफ़रान रहता है !! (जाफ़रान = केसर )

हमें हरीफ़ों की तादाद क्यों बताते हो! ( हरीफ़ों की तादाद = साथीदारांची संख्या )
हमारे साथ भी बेटा जवान रहता है!!

सजाये जाते हैं मक़तल मेरे लिये ‘राना’! ( मक़तल = कत्तलखाने )
वतन में रोज़ मेरा इम्तहान रहता है!!

मुनव्वर राणा .

शुचि's picture

22 Apr 2010 - 7:14 pm | शुचि

तुम्हारे ख़्वाबों से आँखें महकती रहती हैं!
तुम्हारी याद से दिल जाफ़रान रहता है !! (जाफ़रान = केसर )

सुभानल्ला!!!!
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Music and poetry only reach the ears of those in anguish.

चतुरंग's picture

22 Apr 2010 - 7:27 pm | चतुरंग

चतुरंग

अश्फाक's picture

23 Apr 2010 - 9:13 pm | अश्फाक

२३-४-१०

अँधेरे चारों तरफ़ सायं-सायं करने लगे!
चिराग़ हाथ उठाकर दुआएँ करने लगे!!

सलिका जिन को सिखाया था हम ने चलने का! ( सलिका = पध्दत )
वो लोग आज हमे दाये बाये करने लगे !! ( दाये बाये = उजवा डावा <दुर्लक्षित करने > )

तरक़्क़ी कर गए बीमारियों के सौदागर! ( बीमारियों के सौदागर = डोक्ट्र्र , दवाखाने ई. )
ये सब मरीज़ हैं जो अब दवाएँ करने लगे!!

लहूलुहान पड़ा था ज़मीं पे इक सूरज!
परिन्दे अपने परों से हवाएँ करने लगे!!

ज़मीं पे आ गए आँखों से टूट कर आँसू!
बुरी ख़बर है फ़रिश्ते ख़ताएँ करने लगे!!

झुलस रहे हैं यहाँ छाँव बाँटने वाले! ( झुलस = झळ लागने )
वो धूप है कि शजर इलतिजाएँ करने लगे!! ( शजर= व्रुक्ष इलतिजाएँ = विनंती )

अजीब रंग था मजलिस का, ख़ूब महफ़िल थी ! ( मजलिस = सम्मेलन )
सफ़ेद पोश उठे काएँ-काएँ करने लगे!! ( सफ़ेद पोश = पांढरपेशे )

राहत इन्दौरी

अश्फाक's picture

24 Apr 2010 - 11:15 am | अश्फाक

२४-४-१०

सियासत किस हुनरमंदी से सच्चाई छुपाती है ! ( सियासत = राजकारण , हुनरमंदी = खुबीने )
जैसे सिसकियो का जख्म शहनाइ छुपाती है !!

जो ईस की तह मे जाता है वापस नही आता! ( तह = तळ )
नदी हर तैरने वाले से गहराइ छुपाती है !!

ये बच्ची चाहती है और कुछ दिन मा को खुश रखना!
ये कपडो की मदद से अपनी लम्बाई छुपाती है !!

मुनव्वर राणा .

आवडाबाई's picture

24 Apr 2010 - 6:48 pm | आवडाबाई

क्या बात है उसने मेरी तस्वीर के टुकड़े !
घर में ही छुपा रक्खे हैं बाहर नहीं फेंके !!
दरवाज़ों के शीशे न बदलवाइए नज़मी !
लोगों ने अभी हाथ से पत्थर नहीं फेंके !!

खूपच सह्ही

अश्फाक's picture

25 Apr 2010 - 6:01 pm | अश्फाक

२५-४-१०

आँख से अश्क़ भले ही न गिराया जाये ! ( अश्क़ = आसु )
पर मेरे गम को हँसी में न उड़ाया जाये !!

तू समंदर है मगर मैं तो नहीं हूँ दरिया ! ( दरिया = नदी )
किस तरह फ़िर तेरी दहलीज़ पे आया जाये !!

दो कदम आप चलें तो मैं चलूँ चार कदम !
मिल तो सकते हैं अगर ऐसे निभाया जाये !!

मुझे पसंद है खिलता हुआ, टहनी पे गुलाब !
उसकी जिद है कि वो, जुड़े में सजाया जाये !!

मेरे जज़्बात ग़लत, मेरी हर इक बात ग़लत ! ( जज़्बात = भावना )
ये सही तो है मगर कितना जताया जाये !!

लाख अच्छा सही वो फूल मगर मुरदा है !
कब तलक उसको किताबों में दबाया जाये !!

रोशनी तुमको उधारी में भी मिल जायेगी !
पर मज़ा तब है कि, जब घर को जलाया जाये !

ललित मोहन त्रिवेदी

अश्फाक's picture

26 Apr 2010 - 11:14 am | अश्फाक

आपल्या सुचना आणि प्रतिक्रिया आमच्यासाठी अमुल्य आहेत, प्रतिक्षेत .........

२६-४-१०

सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं!
मांगा ख़ुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं!!

सोचा तुझे, देखा तुझे चाहा तुझे मांगा तुझे !
मेरी वफ़ा मेरी ख़ता, तेरी ख़ता कुछ भी नहीं!!

जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाये रात भर!
भेजा वही काग़ज़ उसे हमने लिखा कुछ भी नहीं!!

इक शाम की दहलीज़ पर बैठे रहे वो देर तक!
आँखों से की बातें बहुत मुँह से कहा कुछ भी नहीं!!

दो चार दिन की बात है दिल ख़ाक में सो जायेगा!
जब आग पर काग़ज़ रखा बाकी बचा कुछ भी नहीं!!

अहसास की ख़ुश्बू कहाँ आवाज़ के जुगनू कहाँ!
ख़ामोश यादों के सिवा घर में रहा कुछ भी नहीं!!

शुचि's picture

26 Apr 2010 - 8:50 pm | शुचि

अहसास की ख़ुश्बू कहाँ आवाज़ के जुगनू कहाँ!
ख़ामोश यादों के सिवा घर में रहा कुछ भी नहीं!!

फारच गोड!!!

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
विश्वच अवघे ओठा लावून, कुब्जा प्याली तो मुरलीरव
डोळ्यांमधुनी थेंब सुखाचे, हे माझ्यास्तव..हे माझ्यास्तव

अश्फाक's picture

27 Apr 2010 - 10:43 am | अश्फाक

२७-४-१०

न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये .....

कभी तो आसमाँ से चांद उतरे जाम हो जाये! (जाम = प्याला)
तुम्हारे नाम की इक ख़ूबसूरत शाम हो जाये!!

हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाये !
चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाये!!

अजब हालात थे यूँ दिल का सौदा हो गया आखिर! (अजब = विचित्र )
मोहबात की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाये !!

समंदर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको!
हवायेँ तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाये!!

मैं एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ! ( एहतियातन = काळ्जीपुर्वक )
कोई मासूम क्यों मेरे लिये बदनाम हो जाये !!

मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा!
परिंदा आसमाँ छूने में जब नाक़ाम हो जाये !!

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो !
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये!!

--बशीर बद्र

अश्फाक's picture

28 Apr 2010 - 7:44 pm | अश्फाक

साहिल पे समन्दर के खजाने नहि आते!
होटो पे मोहोब्बत के फसाने नहि आते!!

सोते मे चमक उठति है पलके हमारी!
आन्खो को अब ख्वाब छुपाने नही आते.!! ` ( पुर्वप्रकाशीत २७-३-१० ला )

पुढे ........

दिल उजड़ी हुई इक सराये की तरह है! ( सराये = धर्मशाला )
अब लोग यहाँ रात जगाने नहीं आते!!

उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में! ( शोख़ = अवखळ )
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते!!

इस शहर के बादल तेरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैं! ( ज़ुल्फ़ों = केस )
ये आग लगाते हैं बुझाने नहीं आते!!

अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गये हैं! ( अहबाब = दोस्त )
आते हैं मगर दिल को दुखाने नहीं आते...!!

आपल्या सुचना आणि प्रतिक्रिया आमच्यासाठी अमुल्य आहेत, प्रतिक्षेत .........

२९-४-१०

इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जायेगा ............

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जायेगा!
इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जायेगा !!

हम भी दरिया हैं अपना हुनर मालूम है !
जिस तरफ भी चले जायेंगे रास्ता हो जायेगा !!

इतनी सचाई से मुझसे जिंदगी ने कह दिया !
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जायेगा !!

मै खुदा का नाम लेकर पी रहा हूँ दोस्तों !
जहर भी अगर इसमें होगा दवा हो जायेगा !!

सब उसी के हैं हवा खुशबू ज़मीनों आसमान !
मै जहाँ भी जाऊंगा उसे पता हो जायेगा !!

dr.bashir badar

शुचि's picture

29 Apr 2010 - 8:00 pm | शुचि

वा! काय तडफ काय आत्मविश्वास आहे या शेरांमधे. मस्त!!
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
विश्वच अवघे ओठा लावून, कुब्जा प्याली तो मुरलीरव
डोळ्यांमधुनी थेंब सुखाचे, हे माझ्यास्तव..हे माझ्यास्तव

आपल्या सुचना आणि प्रतिक्रिया आमच्यासाठी अमुल्य आहेत, प्रतिक्षेत .........

क़द में छोटे हों मगर लोग बड़े रहते हैं...........

३०-४-१०

उन घरों में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं!
क़द में छोटे हों मगर लोग बड़े रहते हैं!!

जो भी दौलत थी वो बच्चों के हवाले कर दी!
जब तलक मैं नहीं बैठूँ ये खड़े रहते हैं !!

मैंने फल देख के इन्सानों को पहचाना है!
जो बहुत मीठे हों अंदर से सड़े रहते हैं!!

मुनव्वर राणा .

१-५-१०

आज फिर कोई भूल की जाए.........

दोस्ती जब किसी से की जाए !
दुश्मनों की भी राए ली जाए !!

मौत का ज़हर है फ़िज़ाओं में ! (फ़िज़ाओं = हवाये )
अब कहां जा के सांस ली जाए !!

मेरे माज़ी के ज़ख्म भरने लगे !
आज फिर कोई भूल की जाए !!

बोतलें खोल के तो पी बरसों !
आज दिल खोल के भी पी जाए !!

राहत इन्दौरी

अश्फाक's picture

2 May 2010 - 9:48 pm | अश्फाक

२-५-१०

हमारे कुछ गुनाहों की सज़ा भी साथ चलती है !
हम अब तन्हा नहीं चलते दवा भी साथ चलती है!! ( तन्हा=एकटे )

अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कुछ हो नही सकता !
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है!!

मुनव्वर राणा .

३-५-१०

राना कभी शाहों की ग़ुलामी नहीं करता.........

हम दोनों में आँखें कोई गीली नहीं करता!
ग़म वो नहीं करता है तो मैं भी नहीं करता!!

मौक़ा तो कई बार मिला है मुझे लेकिन!
मैं उससे मुलाक़ात में जल्दी नहीं करता!!

वो मुझसे बिछड़ते हुए रोया नहीं वरना!
दो चार बरस और मैं शादी नहीं करता!!

वो मुझसे बिछड़ने को भी तैयार नहीं है!
लेकिन वो बुज़ुर्गों को ख़फ़ा भी नहीं करता!! ( बुज़ुर्गों = वडिलधारे, ख़फ़ा = नाराज )

ख़ुश रहता है वो अपनी ग़रीबी में हमेशा!
‘राना’ कभी शाहों की ग़ुलामी नहीं करता!! ( शाह = बादशाह )

मुनव्वर राना .

शुचि's picture

3 May 2010 - 8:45 pm | शुचि

हम दोनों में आँखें कोई गीली नहीं करता!
ग़म वो नहीं करता है तो मैं भी नहीं करता!!

मौक़ा तो कई बार मिला है मुझे लेकिन!
मैं उससे मुलाक़ात में जल्दी नहीं करता!!

किती हा निग्रह! प्रेमात "शरणभाव" महत्त्वाचा हे दोघंही जाणत नाहीत जणू. दोघंही तोडीसतोड मानी आहेत.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
विश्वच अवघे ओठा लावून, कुब्जा प्याली तो मुरलीरव
डोळ्यांमधुनी थेंब सुखाचे, हे माझ्यास्तव..हे माझ्यास्तव

अश्फाक's picture

5 May 2010 - 10:02 pm | अश्फाक

५-५-१०

अंजाम उसके हाथ है आगाज कर के देख ! ( शेवट परमेश्वराच्या हातात आहे , सुरवात करुन तर बघ )
भिगे हुए परो से ही परवाज कर के देख !! ( चिंब भिजलेल्या पंखांनी उडुन तर बघ )

नवाज देवबंदी .

७-५-१०

जहा तक हो सके हमने तुम्हे परदा कराया है !
मगर ऐ आसुओ तुम ने बडा रुसवा कराया है !! ( रुसवा = बदनाम )

चमक ऐसे नही आती है, खुद्दारी कि, चेहरे पर ! ( खुद्दारी = आत्मनिर्भरता )
अना को हम ने दो दो वक्त का फाका कराया है !! ( अना = आत्मसन्मान / फाका = उपासमार)

मुनव्वर राना .

८-५-१०

पहलु मे दिल बदलता है, पहलु संभालिये! ( पहलु मे = बगल मधे/बाजुला )
मेहफील मे आता है कोइ दस्त-ए-हिना लिये!! ( दस्त-ए-हिना= मेहंदी लावलेले हाथ )

तबअं(न) मेरी नजर बुरी नही मगर हुजुर ! ( तबअं(न)= पिंडाने , स्वाभावाने / तबीयतने )
कुछ आप भी तो अपनी नजर को संभालिये!!

गुमनाम.

आपल्या सुचना आणि प्रतिक्रिया आमच्यासाठी अमुल्य आहेत, प्रतिक्षेत .........

१२-५-१०

बीमार को मर्ज़ की दवा देनी चाहिए!
वो पीना चाहता है पिला देनी चाहिए!!

अल्लाह बरकतों से नवाज़ेगा इश्क़ में! ( बरकतों से = क्रुपा ज्याने वाढेल )
है जितनी पूँजी पास लगा देनी चाहिए!!

ये दिल किसी फ़कीर के हुज़रे से कम नहीं!
ये दुनिया यही पे लाके छुपा देनी चाहिए!!

मैं फूल हूँ तो फूल को गुलदान हो नसीब! ( गुलदान= flowerpot )
मैं आग हूँ तो आग बुझा देनी चाहिए!!

मैं ख़्वाब हूँ तो ख़्वाब से चौंकाईये मुझे!
मैं नीद हूँ तो नींद उड़ा देनी चाहिए!!

मैं जब्र हूँ तो जब्र की ताईद बंद, हो!! ( जब्र= जोरजबरदस्ती , ताईद = समर्थन )
मैं सब्र हूँ तो मुझ को दुआ देनी चाहिए!!

मैं ताज हूँ तो ताज को सर पे सजायें लोग!
मैं ख़ाक हूँ तो ख़ाक उड़ा देनी चाहिए!!

सच बात , कौन है जो सरे-आम कह सके ?
मैं कह रहा हूँ , मुझको सजा देनी चाहिए !!

सौदा यही पे होता है हिन्दोस्तान का !
संसद भवन में आग लगा देनी चाहिए!!

राहत इन्दोरी .

१८-५-१०

यह एहतराम तो करना ज़रूर पड़ता है! (एहतराम करना = मान ठेवने.)
जो तू ख़रीदे तो बिकना ज़रूर पड़ता है!!

बड़े सलीक़े से यह कह के ज़िन्दगी गुज़री! ( सलीक़े से = पद्धत्शीर )
हर एक शख़्स को मरना ज़रूर पड़ता है!! ( शख़्स = व्यक्ती )

वो दोस्ती हो मुहब्बत हो चाहे सोना हो!
कसौटियों पे परखना ज़रूर पड़ता है!!

कभी जवानी से पहले कभी बुढ़ापे में!
ख़ुदा के सामने झुकना ज़रूर पड़ता है!!

हो चाहे जितनी पुरानी भी दुश्मनी लेकिन!
कोई पुकारे तो रुकना ज़रूर पड़ता है!!

वफ़ा की राह पे चलिए मगर ये ध्यान रहे!
की दरमियान में सहरा ज़रूर पड़ता है.!! ( सहरा = वाळवंट )

मुनव्वर राना.

२१-५-१०

मोअतबर दिल को तेरी याद बना देती है! ( मोअतबर= विश्वसनिय )
आशिकी फूल को फरहाद बना देती है !!

( तुझी आठवन आली की ह्रद्याला शान्ती,विश्वास वाटतो )
( प्रेमात काय जादु आहे कोन जाने ?
जे फुला सारख्या नाजुक व्यक्तीला फरहाद सारखे खंबिर बनवते )

पुरशिकम लोग जंग नही लडा करते ! ( पुरशिकम = पोट भरलेले )
भुक इन्सान को फौलाद बना देती है!!

३-६-१०

अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको!
मैं हूँ तेरा नसीब अपना बना ले मुझको!!

मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के मानी! ( मानी = अर्थ )
ये तेरी सादा दिली मार न डाले मुझको !!

तूने देखा नहीं आईने से आगे कुछ भी!
ख़ुदपरस्ती में कहीं तू न गँवा ले मुझको!! ( ख़ुदपरस्ती = स्वत ला पुजने )

कल की बात और है मैं अब सा रहूँ या न रहूँ!
जितना जी चाहे तेरा आज सता ले मुझको!!

ख़ुद को मैं बाँट न डालूँ कहीं दामन-दामन!
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको!!

मैं जो काँटा हूँ तो चल मुझसे बचाकर दामन!
मैं हूँ गर फूल तो जूड़े में सजा ले मुझको!!

तर्क-ए-उल्फ़त की क़सम भी कोई होती है क़सम! ( तर्क-ए-उल्फ़त = प्रेम तर्क करने )
तू कभी याद तो कर भूलने वाले मुझको!!

वादा फिर वादा है मैं ज़हर भी पी जाऊँ "क़तील"!
शर्त ये है कोई बाँहों में सम्भाले मुझको!!

कतिल शिफाइ