मन दु:खाचा तरंग.. मन सुख, अंतरंग..
जसा फणसाचा गर.. कठीणात मऊसर!
मन अप्राप्य सागर.. अंतहीन कुतूहल..
जसा सुगंध अल्लड..शब्द-रूपाच्या पल्याड!
मन अस्तित्व प्रचिती..मन फक्त विसंगती!
जशी रात, न्हायलेली, चांदण-प्रकाशाच्या ज्योती!!
मन शब्दांची आरास..कल्पनांचा सहवास!
जशी सावली सजग..अव्यक्ताचं व्यक्त जग!!
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मनी मनाचा विचार.. स्वत्व शोध.. निरंकुश!
मन आनंद केवळ.. डुंबण्याचा अवकाश!!
प्रतिक्रिया
17 Aug 2018 - 12:01 pm | चांदणे संदीप
अदभूत!!
Sandy
25 Aug 2018 - 8:44 am | विवेकपटाईत
कविता आवडली.
25 Aug 2018 - 12:44 pm | यशोधरा
सुरेख!