अनन्त्_यात्री in जे न देखे रवी... 9 Feb 2017 - 11:27 am त्या आतल्या द्युतीला उमजू कसे? न कळते -जी सर्वव्यापी ऐसे स्थलकाल भरुनी उरते चक्षूस ना दिसे ती पाळी न नियम कोते क्षणमात्र लुप्त होते क्षणि झगमगून उठते ही तीच का मिती, जी- -स्पर्शात रंग भरते -ध्वनितून नव-रसांना -उधळीत गंध होते कविता माझीमुक्तक प्रतिक्रिया वा! 9 Feb 2017 - 12:18 pm | पैसा खूप सुरेख! +१. 10 Feb 2017 - 12:08 pm | प्रभास +१. तुमची प्रत्येक कविता एखाद्या गहन औपनिषदीक तत्वाप्रमाणे आहे. छानच !! 10 Feb 2017 - 12:14 am | शार्दुल_हातोळकर छानच !! अप्रतिम! 12 Feb 2017 - 10:51 am | अत्रुप्त आत्मा अप्रतिम! धन्यवाद, 13 Feb 2017 - 10:02 am | अनन्त्_यात्री धन्यवाद, पैसा, प्रभास, शार्दूल, आत्मब॑ध !
प्रतिक्रिया
9 Feb 2017 - 12:18 pm | पैसा
खूप सुरेख!
10 Feb 2017 - 12:08 pm | प्रभास
+१.
तुमची प्रत्येक कविता एखाद्या गहन औपनिषदीक तत्वाप्रमाणे आहे.
10 Feb 2017 - 12:14 am | शार्दुल_हातोळकर
छानच !!
12 Feb 2017 - 10:51 am | अत्रुप्त आत्मा
अप्रतिम!
13 Feb 2017 - 10:02 am | अनन्त्_यात्री
धन्यवाद, पैसा, प्रभास, शार्दूल, आत्मब॑ध !