आम्हां नकळे नज़्म, नकळेच शेर।
गझली बहर, नकळे आम्हां।।
काफिया की आधी, रदिफ म्हणावा।
मतला जुळावा नकळे आम्हां।।
कधी म्हणे सूट, कधी अपवाद।
शायरांचे वाद नकळे आम्हां।।
वज्न,रुक्न, जुज; लाम, गाफ आणि।
नकळेची वाणी गझलेची।।
स्वाम्या म्हणे माज मोकार करावा।
रतीब घालावा गझलांचा।।
- स्वामी संकेतानंद
प्रतिक्रिया
13 Dec 2016 - 10:57 am | खेडूत
वा!
मोक्कार आवडले काव्य.
रतीबाच्या प्रतिक्षेत..!
13 Dec 2016 - 11:28 am | सानझरी
हाय कंबख़्त, तूने पी हि नहीं!!!
13 Dec 2016 - 12:27 pm | पैसा
कस्ला आहेस रे तू! बर्याच जणांची दुकाने बंद करशील अशाने!
14 Dec 2016 - 6:07 am | अत्रुप्त आत्मा
+१
स्वामिज्जी दुत्त दुत्त आहेत!
स्वामिज्जी की म-हा... न रचनांए|
14 Dec 2016 - 7:32 am | पदकि
आवड्ली!
14 Dec 2016 - 11:39 pm | शार्दुल_हातोळकर
लाजवाब हो.....