आता सरला काळोख
उजाडला दिवस
सूर्यकिरणांची नक्षी
खेळेल दारात
नाही वळून पहायचे
सखे मागे आता
तुझ्यासाठी आहेत
चहुदिशांनी वाटा
चाललीस वाट तू
खाचाखळग्यांची
विसर सर्व सारे
आणि झेप घे गरुडाची
झाले मोकळे आकाश
आज तुझ्या माझ्यासाठी
स्वप्न पाखरांचा थवा
घाले गगना गवसणी
- विभावरी
प्रतिक्रिया
8 Mar 2015 - 9:49 pm | आरोही
मस्त !! कविता आवडली ....
8 Mar 2015 - 10:28 pm | प्रीत-मोहर
विभाताई खूपच आवड्ली ग कविता.
9 Mar 2015 - 8:01 am | अजया
छान आहे कविता!
9 Mar 2015 - 8:22 am | मितान
अगदी महिलादिनाला समर्पक कविता विभाताई :)
9 Mar 2015 - 9:36 am | सविता००१
कविता
9 Mar 2015 - 11:43 am | पिशी अबोली
खूप छान गं विभाताई!
9 Mar 2015 - 4:04 pm | स्पंदना
फारच छान विभावरी!!
9 Mar 2015 - 6:10 pm | मधुरा देशपांडे
छान कविता.
10 Mar 2015 - 1:41 am | स्रुजा
खूप छान कविता.
10 Mar 2015 - 6:16 am | जुइ
सुंदर कविता!!
10 Mar 2015 - 3:02 pm | इशा१२३
आवडलि कविता..
10 Mar 2015 - 3:30 pm | स्वाती दिनेश
कविता छान आहे,
स्वाती
10 Mar 2015 - 5:15 pm | सस्नेह
ही कविता तमाम अनाहितांना पण लागू आहे !
12 Mar 2015 - 12:54 am | सानिकास्वप्निल
कविता छान आहे.
15 Mar 2015 - 3:26 am | उमा @ मिपा
छान कविता.
16 Mar 2015 - 4:40 pm | Mrunalini
छान आहे कविता. मस्त जमलीये.
19 Mar 2015 - 2:07 pm | कविता१९७८
छान कविता
19 Mar 2015 - 2:07 pm | कविता१९७८
छान कविता
23 Mar 2015 - 2:15 pm | पैसा
खूप सकारात्मक लिहिलंय!
26 Mar 2015 - 6:17 pm | रेवती
कविता आवडली.