योगेश्वर....
अज्ञानी जीव, होई वेडापिसा..
तयाचे समाधान, योगेश्वर.
मनी असे नित्य, प्रश्नांचे आवर्त..
तयाचे उत्तर, योगेश्वर.
भवनदी माजी, आशेचा भोवरा..
रक्षी तो सोयरा, योगेश्वर.
देहाच्या ममत्वे, दु:ख निरंतर..
आनंद निधान, योगेश्वर.
मानवी जीवन, वृत्तीचा पसारा..
तयासि निवृत्ती योगेश्वर.
दासाचि इच्छा, चुको गर्भवास..
तयासि मुक्ती, योगेश्वर.
साधकासी लागे, स्वरूपाची आस..
निजरूप त्याचे, योगेश्वर.
भक्ती, ज्ञान, योग, मार्ग जरी भिन्न..
परब्रह्म एक, योगेश्वर.
जयगंधा..
२४-११-२०१७.
प्रतिक्रिया
21 Dec 2020 - 6:48 am | प्राची अश्विनी
कविता आवडली.
30 Dec 2020 - 6:52 pm | Jayagandha Bhat...
धन्यवाद..
21 Dec 2020 - 10:17 am | राघव
भक्ती, ज्ञान, योग, मार्ग जरी भिन्न..
परब्रह्म एक, योगेश्वर.
आवडले
21 Dec 2020 - 3:37 pm | मूकवाचक
+१
30 Dec 2020 - 6:53 pm | Jayagandha Bhat...
धन्यवाद
30 Dec 2020 - 6:54 pm | Jayagandha Bhat...
धन्यवाद
22 Dec 2020 - 9:54 am | प्रचेतस
सुरेख
22 Dec 2020 - 10:50 am | ज्ञानोबाचे पैजार
मस्त आहे कविता,
कवितेचा आशय अतिशय आवडला
पैजारबुवा,
30 Dec 2020 - 7:11 pm | बाप्पू
छान..